आदमखोर कुत्तों का आतंक थमने का नाम नहीं ले रहा है. प्रशासन आतंक पर जितना अंकुश लगाने के दावे कर रहा है, आदमखोर उतनी ही तेजी से हमला कर रहे हैं. मंगलवार की शाम आदमखोर जानवरों के झुण्ड ने एक बच्ची पर हमला कर दिया. जिससे बच्चे गंभीर रूप से घायल हो गई. बच्ची को नाजुक हालत में जिले के सरकारी जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया.
अब तक 27 बच्चों को घायल कर चुके आदमखोर:
इस हमले में घायल होने वाले बच्चों की संख्या 26 से बढ़कर 27 हो गई है. शहर कोतवाली क्षेत्र के ग्राम बिहारी गंज निवासी याकूब की पुत्री सहरीन मंगलवार को गांव के बाहर खेत में गेहूं की बालियाँ बीनने का काम कर रही थी.
इस बीच अचानक आदमखोर जानवरों का झुंड वहां पर पहुंचा, इससे पहले समरीन कुछ समझ पाती आदमखोर जानवरों ने उस पर हमला कर दिया. समरीन को चीखते देख गांव के लोग वहां लाठी डंडा लेकर दौड़े.
ग्रामीणों ने कड़ी मशक्कत के बाद कुत्तों को खदेड़ा तब तक बच्ची गंभीर रूप से घायल हो चुकी थी. परिवार के लोग उसे जिला अस्पताल लेकर पहुंचे जहां पर डॉक्टरों ने उसे भर्ती कर उसका इलाज शुरू कर दिया.
घटना की जानकारी पाने के बाद शहर कोतवाली तालगांव खैराबाद थाना क्षेत्र की पुलिस अलर्ट हो गई. कोतवाली पुलिस की टीम उन जंगली जानवरों को खदेड़ते हुए खैराबाद के फिरोजपुर गांव तक पहुंची. इसके बाद कुत्ते गन्ने के खेत की तरफ भाग गए।
मारे गए कुत्तों का नहीं हो रहा पोस्टमार्टम:
एक तरफ जहां आदमखोर कुत्ते मासूमों की जान के दुश्मन बने हुए हैं, वहीं दूसरी तरफ MRSP नामक एक संस्था कुत्तों के मारे जाने के खिलाफ हैं. इस संस्था के पदाधिकारियों कई दिनों से खैराबाद इलाके में दौरा कर रहे हैं.
साथ ही बेगुनाह कुत्तों की मौत को लेकर भी सवाल उठाए. साथ ही संस्था के पदाधिकारियों ने SO को शिकायती पत्र देकर कुत्तों को मारने वालों पर एक केस दर्ज करने के लिए तहरीर भी दी है. संस्था के संयोजक प्रदीप कुमार पात्रा व कोषाध्यक्ष सभा खान ने डीएफओ और एडीएम से मिलकर कुत्तों की मौत को लेकर सवाल उठाए.
संस्था का कहना है कि तमाम कुत्तों को मार डाला गया है लेकिन उनका पोस्टमार्टम नहीं कराया गया. तर्क दिया कि अगर कुत्तों का पोस्टमार्टम कराया गया होता तो यह पता चल जाता कि वह कुत्ते मारे गए हैं.
उन्होंने इंसान का मांस खाया है या नहीं. लेकिन प्रशासनिक अमला कह रहा है कि हम कुत्तों का पोस्टमार्टम करवा रहे हैं.
वन विभाग ने की तेंदुए की पुष्टि:
एक तरफ जहाँ पूरे सीतापुर के खैराबाद इलाके में आदमखोर जानवर का आतंक हैं. वही दूसरी ओर एक चौंकाने वाला सच सामने ये आ गया कि किसी जंगली जानवर ने गाँव लौटते समय एक ग्रामीण पर हमला कर उसे घायल कर दिया, जिसके पग चिन्हों से ये पता चला कि ये तेंदुआ है.
पूरे मामले को देखते हुये वन विभाग ने पग चिन्हों का बारीकी से मुआयना किया और उसके बाद हमला करने वाले जानवर के तेंदुआ होने की पुष्टि कर दी.
तेंदुए की आमद देखते हुए वन विभाग की ओर से ग्रामीणों को सतर्क रहने की हिदायत दी गई है.
बता दें कि पिछले सोमवार की शाम सीतापुर की पट्टी बाजार से वापस आ रहे बेनी माधवपुर में रहने वाले रामनरेश पर एक जंगली जानवर द्वारा हमला किया गया. हमले में रामनरेश जख्मी हो गए थे.
क्षेत्र पंचायत सदस्य राजेंद्र सिंह मौर्य ने वन विभाग को घटना की सूचना दी जिसके बाद वन विभाग की टीम ने देर रात घटनास्थल पर पहुंचकर हमला करने वाले वन्य जीव के पग चिन्हों की जांच पड़ताल शुरू कर दी.
मंगलवार की सुबह महमूदाबाद वन क्षेत्र के रेंजर आर सी यादव ने अपनी टीम के वन रक्षक जयप्रकाश मिश्रा, सोहन कुमार गुप्ता, फारेस्ट गार्ड सुशील कुमार, मोहम्मद यूनुस के साथ जख्मी रामनरेश के घर जाकर मिले और उससे जानकारी ली.
बाद में टीम ने फिर से घटनास्थल का निरीक्षण किया जिसके बाद वन विभाग ने हमलावर वन्य जीव के तेंदुआ होने की पुष्टि कर दी. रेंजर आर सी यादव ने ग्रामीणों को सतर्क रहने और खेत में झुंड के साथ काम करने की सलाह दी है. साथ ही वन विभाग की टीम कमिंग कर रही है.
प्रदीप पात्रा का बयान:
MRSP सेवा समिति के अवैतनिक पशु कल्याण अधिकारी प्रदीप पात्रा AWBI की तरफ से कल सीतापुर गए थे. उनके साथ MRSP की कोषाध्यक्ष सबा खान भी सीतापुर गई थी. वह सीतापुर में हो रहे बेगुनाह कुत्तों की मौत की पड़ताल में लगे थे.
उनका कहना है कि जिन लोगों ने स्थानीय कुत्तों को मारा है, जाने अनजाने में ही सही उनके खिलाफ FIR लिखवाना जरूरी है और हम FIR लिखवाने ही आए हैं.
FIR हम अज्ञात लोगों के खिलाफ लिखवायेंगे. इसलिए सबसे पहले वह DM के पास अपनी FIR लिखवाने के लिए पहुंचे.
पात्रा का कहना है कि चाहे वह कोई भी हो, आम आदमी हो, पुलिस वाला हो या वन विभाग का आदमी हो, इसलिए उच्च अधिकारियों से मिलना जरूरी है ताकि उनके खिलाफ FIR लिखवाई जा सके.
उनके मुताबिक DM अभी अवकाश पर है. उनकी जगह पर सीडीओ उनका काम देख रहे हैं, जो भी शाम को 5:00 बजे मिल पाए.
इस संवेदनशील मामले पर उन्होंने कहा कि अभी हमें सुझाव दें कि इन्हें कैसे रोका जाए, कैसे उन्हें पकड़ा जाए, FIR तो बाद में भी लिख जाएगी. उसके बाद भी उनकी कई मुद्दों पर उनसे बहस भी हुई. उसके बाद हम डीएफओ से मिलने की कोशिश करते रहे लेकिन डीएफओ का नंबर नोट रिचेबल बताता रहा.
प्रशासन को यह बताया गया कि एक मृत लोमड़ी जो कि एक गांव में पेड़ पर लटकी हुई है, पर अभी तक प्रशासन की नजर नहीं पड़ी है. यह लोमड़ी पिछले 2 मई से 15 मई तक उस पेड़ पर लटकी हुई थी. उसका पोस्टमार्टम होना चाहिए था, लेकिन उसका अभी तक पोस्टमार्टम नहीं हुआ है.
प्रशासन लगा रहा कुत्तों की रट:
इसका जवाब देने के लिए किसी भी अधिकारी ने मुनासिब नहीं समझा और वह बस कुत्ते की रट लगा रहे हैं कि अटैक करने वाले कुत्ते ही हैं कोई जानवर नहीं.
इसके बाद प्रदीप पात्रा बताते हैं कि जब मैं वापस गांव से लखनऊ की तरफ लौट रहा था तो मुझे एक कुत्ते जैसी लोमड़ी दिखी जिसका मैंने पीछा किया. लगभग 1 किलोमीटर तक मैंने उसका पीछा किया. रास्ता उबड़-खाबड़ था और वह लोमड़ी तेजी से घने खेतों की तरफ अंदर की ओर चली गई. जैसा कि कुत्ते अमूमन नहीं करते हैं.
कुत्ते हमेशा आबादी के क्षेत्र की तरफ दौड़ते हैं लेकिन जंगली जानवर हमेशा खेतों की तरफ भागता है वह आबादी की तरफ नहीं भागता.
वह देखने में एक लोमड़ी की तरह लगता है. उसकी पूँछ झबरीली होती है और दांत नुकीले होते हैं, मुंह पतला होता है. वह अपने शिकार को सूंघते हुए उस पर अटैक करते हैं भोंकते नहीं है, जबकि कुत्ता गुर्राता और भोंकता है.
शिकार करने से पहले इन सब चीजों से साफ मालूम पड़ता है कि हमला करने वाले कोई कुत्ते नहीं बल्कि जंगली जानवर है या फिर जंगली लोमड़ी है.
दुधवा के संस्थापक निदेशक डॉ. राम लखन सिंह:
वहीँ दूसरी तरफ दुधवा के संस्थापक निदेशक डॉ. राम लखन सिंह ने बताया कि इससे पहले उन्होंने कई अभियान चलाए। जिनमें बच्चों की जान लेने वाले कई भेड़िये को मारने का काम किया और इसके अलावा उन्होंने टाइगर को भी मारने में सफलता प्राप्त की.
उन्होंने 1977 से 1985 तक इसमें सेवाएं दी हैं। इस दौरान उन्हें तीन टाइगर मारने पड़े थे।
उन्होंने बताया कि 38 मनुष्यों को इन टाइगर ने खा डाला था। इसके बाद उन्होंने यह अभियान चलाकर 3 टाइगर को मारा था।
2002 में हरदोई में गन्ने के खेत में एक टाइगर को मारा गया था। इस टाइगर को मारना अनिवार्य था। क्योंकि टाइगर ने भी कई शिकार किए थे।
इसके बाद प्रोजेक्ट टाइगर भारत सरकार ने निदेशक रहने के दौरान पूरे देश में टाइगर द्वारा मानव भक्षण की समस्या के निदान के लिए उन्होंने वर्ष 1985 से 1991 तक 6 वर्षों तक योगदान देकर काम किया।
वर्ष 2004 में वह प्रमुख वन संरक्षक उत्तर प्रदेश के पद से सेवानिवृत्त हुए। इसके बाद वह अपने अनुभव को लिखने का काम कर रहे हैं।
साथ ही लखनऊ विश्वविद्यालय में पर्यावरण विज्ञान के पोस्ट ग्रेजुएट स्तर पर विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में नई पीढ़ी को पर्यावरण के बारे में सिखाने का काम कर रहे हैं और आगे बढ़ने का प्रयास कर रहे हैं।
170 बच्चों का शिकार करने वाले 13 भेड़िये भी मारे:
उन्होंने बताया कि इसके बाद उत्तर प्रदेश में भेड़ियों के हमले बढ़े जौनपुर, प्रतापगढ़, सुल्तानपुर और रायबरेली में करीब 170 लोगों को 4 सालों में इन भेड़ियों ने मार डाला था। इसमें छोटे बच्चे ही ज्यादा इन भेड़ियों ने शिकार किये थे।
इन बच्चों को भेड़िए उनकी मां की गोद से उठाकर ले जाते थे। इस दौरान उन्होंने अभियान चलाकर 13 भेड़िये मारे थे।
झुंड में भेड़िये करते हैं शिकार:
उन्होंने बताया कि भेड़िये झुंड में सामूहिक रूप से शिकार करते हैं। उन्होंने बताया कि सीतापुर में हो रही घटनाओं में हमला करने वाले अपराधी प्रवृत्ति के जंगली कुत्ते या भेड़िये ही हो सकते हैं।
उन्होंने कहा कि ऐसी प्रवृत्ति भेड़ियों की होती है। यह बहुत ही नियम के पक्के होते हैं और अपनी टीम बनाकर वारदात को अंजाम देते हैं। भेड़िए बच्चों की गर्दन पर ही वार करते हैं। यह वयस्कों से डरते रहते हैं।
अगर भेड़िया कहीं जा रहा है तो वह सीधे चलता जाएगा। अपनी गर्दन नीचे झुका लेगा।
भड़िये नजरे झुका के चलता है किसी की तरफ देखता नहीं है।
उसकी एक आदत यह भी होती है कि वह निरंतर चलता ही रहता है कभी रुकता नहीं घटना को अंजाम देने के दौरान कई टीम के सदस्यों के साथ अंजाम देता है।
इसके गैंग में शामिल सदस्य एक दूसरे को शिकार आगे बढ़ाते रहते हैं। भेड़िया पहले शिकार नहीं खाता, सबसे पहले वह मादा को खिलाता है और बच्चों को खिलाता है इसके बाद स्वयं भी खाता है।
डॉक्टर ने बताया कि भेड़िये नदियों के किनारे या जंगलों में जमीन में खोह बनाकर रहते हैं। उन्होंने कई ऐसे तथ्य बताये जिन्हें आपने कभी नहीं सुना होगा।
लखनऊ में हो रही खूंखार कुत्तों की नसबंदी:
सीतापुर के खूंखार कुत्तों की लखनऊ में नसबंदी हो रही है। सीतापुर में बच्चों पर हमला करने वाले खूंखार कुत्तों की नसबंदी लखनऊ में की जा रही है।
इसके लिए कुत्तों को सीतापुर से लखनऊ नगर निगम के कान्हा उपवन में लाया गया है।
यहां बारिश कुत्तों को लाकर नसबंदी की गई। 48 घंटे के अंदर इन कुत्तों को वापस सीतापुर में उनकी मूल जगहों पर छोड़ दिया जाएगा
लखनऊ नगर निगम के मुख्य पशु चिकित्सक डॉक्टर अरविंद राव ने बताया कि सीतापुर में नसबंदी किए जाने की सुविधा नहीं है। इसके बाद डीएम सीतापुर में सचिव नगर विकास और नगर आयुक्त लखनऊ से मदद मांगी थी.