तनाव की स्थिति यदि लगातार आप पर हावी रही तो आपकी प्रतिरक्षक कोशिकाओं में बदलाव कर यह आपको सिजोफ्रेनिया जैसी गंभीर बीमारी का रोगी बना सकती हैं। यह बीमारी गर्भ में पल रहे बच्चे के न्यूरोन में बदलाव आने पर भी हो सकती है। विश्व के एक प्रतिशत लोग इस बीमारी के शिकार हैं। आंकड़े बताते हैं कि यह बीमारी 16 से 30 वर्ष की उम्र वाले लोगों में अधिक पायी जाती है लेकिन आजकल बचपन से ही तनाव की स्थिति होने पर यह बीमारी कम उम्र में भी हो सकती है।

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युवाओं को अधिक होता है ये रोग

  • लोहिया अस्‍पताल के मनोरोग विशेषज्ञ बताते हैं कि सिजोफ्रेनिया को मनोरोग माना जाता है।
  • इसमें रोगी को अकेले रहने पर तनाव व भ्रम के साथ ही उल्‍टे सीधे विचार घेरे रहते हैं।
  • इससे व्यवहार में गंभीर विकृतियां पैदा हो जाती है।
  • इन विकृतियों के कारण व्यवसाय या पढ़ाई लिखाई संग दिनचर्या भी प्रभावित हो जाती है।
  • सिजोफ्रेनिया का रोगी अकेले रहना पसंद करता है।
  • रोगी के अकेले बैठे-बैठे कुछ न कुछ बोलता रहता है जो हो सकता है किसी और को समझ न आए।
  • बिना वजह हंसना व रोना भी इसका लक्षण है। अचानक दिनचर्या में बदलाव भी दिखते हैं।
  • यह रोग हमारे मस्तिष्क में महत्वपूर्ण रासायनिक तत्वों की असामान्य कमी या रसायनों में परिवर्तन के चलते होता है।
  • कभी-कभी यह आनुवांशिक भी होती है। माता-पिता से बच्‍चों में पहुंच जाती है।
  • हर किसी को बात करता देख रोगी यह महसूस करता है कि सभी उसकी चर्चा कर रहे हैं।
  • सच्चाई से परे रोगी भ्रम की स्थिति में पहुंच जाता है।
  • उसे महसूस होता है कि सभी उसके खिलाफ हैं, कोई साजिश रच रहे हैं।
  • कई बार शक व आशंका से ग्रस्त रोगी बचाव में मारपीट व तोडफ़ोड़ करने लगता है।
  • इस रोग से ग्रस्त कुछ रोगी अपने मन की बात भली-भांति विस्तारपूर्वक नहीं कह पाते हैं।
  • वे बात करते-करते बेतुके ढंग से कहीं की बात कहीं जोड़ देते हैं।
  • अटपटे शब्दों का प्रयोग करते हैं। कुछ रोगी तो पूरी तरह चुप्पी साध लेते हैं।
  • या सिर्फ एक या दो शब्दों में ही हर बात का जवाब देते हैं।
  • घर से निकल जाना और फिर कई दिनों बाद बदहाल हालत में लौटना।
  • घंटों तक या दिन भर चलते रहना या चक्कर लगाते रहना।
  • शरीर के अंगों को बेवजह हिलाना, मोड़ना आदि।
  • कई दिनों तक घर से या कमरे से बाहर न निकलना।

संभव है इलाज

  • डॉक्टरों का कहना है कि इस रोग के इलाज में दवाओं का महत्वपूर्ण योगदान है।
  • दवाओं के नियमित सेवन से रोगी में व्याप्त शक व अन्य विकृतियां अपने आप ठीक हो जाती हैं।
  • इस रोग के एक बार होने के बाद बार-बार होने की संभावना रहती है।
  • इसलिए दवाओं को मनोरोग विशेषज्ञ की सलाह से लगातार लेना जरूरी होता है।
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