सेना कोर्ट लखनऊ के न्यायमूर्ति डीपी सिंह और एयर मार्शल अनिल चोपड़ा की खण्डपीठ ने इलाहबाद के झूंसी निवासी श्रीराम यादव के मामले में रक्षा मंत्रालयए भारत सरकार और थल सेनाध्यक्ष द्वारा दिव्यांगता पेंशन नकारने के आदेश को खारिज कर दिया है। साथ ही 50 फीसदी विकलांगता पेंशन चार महीने के अन्दर दिए जाने का का निर्णय सुनाया है।
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याचना को सिरे से किया ख़ारिज
- आपको बता दें की मामला गांव लीलापुर कला, परगना झूंसी जनपद इलाहबाद निवासी श्रीराम यादव का था।
- 29/09/1970 में टेरिटोरियल आर्मी में श्रीराम सिपाही के पद पर भर्ती हुए थे।
- श्रीराम को 17 वर्ष की नौकरी के बाद वर्ष 1989 में इस आधार पर टेरिटोरियल आर्मी से डिस्चार्ज कर दिया गया था।
- उसे इसेंसिअल हाइपरटेंशन नाम की बीमारी है जिसका संबंध टेरिटोरियल आर्मी से नहीं है।
- सैनिक ने रक्षा मंत्रालय और थल सेनाध्यक्ष से अपील की थी।
- उसकी बीमारी पहली बार टेरिटोरियल आर्मी की सेवा के दौरान हुई है।
- इसका संबंध पहले से नहीं लगाया जा सकता लेकिन उसकी एक भी नहीं सुनी गई।
- और उसकी इस याचना को सिरे से खारिज कर दिया गया।
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- सिपाही को प्रादेशिक सेना नियम के अन्दर गलत तरीके से बगैर दिव्यांगता पेंशन से निष्कासित किया था।
- उसने उच्च न्यायलय इलाहाबाद के सामने वर्ष 2000 में रिट याचिका दायर की जो 16 साल तक विचाराधीन रही।
- इसके बाद वर्ष 2016 में सेना कोर्ट लखनऊ में स्थानांतरित होकर आई।
- और टीए संख्या 3-2016 के रूप में दर्ज हुई।
- सेना कोर्ट लखनऊ मामलों को शीघ्र निस्तारित करने की दिशा में संलग्न होने के कारण त्वरित सुनवाई की।
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चार महीने में दें पेंशन
- सेना कोर्ट लखनऊ के न्यायमूर्ति डीपी सिंह ने इस पर स्पष्ट कहा था।
- मामले को लंबे समय तक लंबित रखने से याची का न्यायालय के प्रति उदासीन रुख इसका कारण बनता है।
- और विलम्ब प्राप्त न्याय अपने उद्देश्यों को खोता दिखाई पड़ता है।
- इसलिए सरकार और याची के अधिवक्ता विजय कुमार पाण्डेय को मामले में दलील देने को कहा।
- सरकारी अधिवक्ता ने कहा कि इस बीमारी का टेरिटोरियल आर्मी से संबंधित नहीं है।
- इसलिए याची का मुकदमा सुनने योग्य नहीं है।इसकी दलीलें तथ्यहीन तर्कों पर आधारित हैं।
- लिहाजा न्यायालय मुकदमें को खारिज करते हुए न्यायलय का समय बर्बाद करने के लिए याची पर बड़ा अर्थदंड लगाया जाए।
- याची के अधिवक्ता विजय कुमार ने सरकार के इन तर्कों का जोरदार विरोध कर दलीलें रखी।
- वकील ने कहा कि वर्ष 1970 में भर्ती के समय याची पूर्णत: स्वस्थ था।
- यह इस आधार पर स्वीकार किया जाना चाहिए
- क्योंकि 17 वर्षों तक बगैर किसी बीमारी के याची ने टेरिटोरियल आर्मी में नौकरी की।
- यदि कोई बीमारी थी तो उसे जब मेडिकल बोर्ड के सामने भर्ती के समय प्रस्तुत किया गया था।
- तो उस समय डॉक्टर के बोर्ड ने किसी बीमारी का जिक्र क्यों नहीं किया।
- और 17 वर्ष नौकरी करने के बाद बगैर किसी लाभ को दिए निकाल दिया जाना पूरी तरह गलत है।
- न्यायमूर्ति डीपी सिंह और एयर मार्शल अनिल चोपड़ा की खण्डपीठ ने याची के अधिवक्ता की दलील को स्वीकार किया।
- उनके द्वारा न्यायालय के समक्ष रखे गए उच्चतम न्यायालय के निर्णयों को नजीर माना।
- और साथ ही आदेश दिया की याची को दिव्यांगता पेंशन चार महीने के अन्दर दी जाये।