सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव यहाँ से लड़ सकते है लोकसभा 2019 का चुनाव
जाट और मुस्लिम वोटरों के वर्चस्व वाली इस सीट पर इस बार भी निगाहें टिकी हैं। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन और शिवपाल यादव के सपा से अलग होने से 2019 का लोकसभा चुनाव यहां दिलचस्प हो गया है। 1967 में सोशलिस्ट पार्टी ने यहां से चुनाव जीता, 1971 में कांग्रेस ने यहां पर जीती। 1977 से लेकर 1989 तक हुए कुल चार चुनाव में भी कांग्रेस सिर्फ एक बार ही जीत पाई। 2019 के लोकसभा चुनाव को लेकर सियासी दलों ने अपने तरकश में तीर जुटाने शुरू कर दिए हैं। इस बीच सबकी नजर यूपी के सबसे बड़े सियासी कुनबे में चल रहे परि’वार’ पर है। अखिलेश यादव से अलग राह बना बना चुके शिवपाल यादव ने फिरोजाबाद से लोकसभा चुनाव लड़ने की संभावनाओं को मजबूत करना शुरू कर दिया है।
- ऐसे में यह सीट मुलायम परिवार का ‘कुरुक्षेत्र’ साबित हो सकती है।
- यहां से मुलायम के चचेरे भाई और सपा के राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव मौजूदा सांसद हैं।
जानिए क्या है फिरोजाबाद सीट पर गत वर्षो का इतिहास
1991 के बाद लगातार तीन बार यहां भारतीय जनता पार्टी जीती, BJP के प्रभु दयाल कठेरिया ने यहां जीत की हैट्रिक लगाई। उसके बाद 1999 और 2004 में समाजवादी पार्टी के रामजी लाल सुमन ने बड़ी जीत हासिल की। समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने भी 2009 से इस सीट पर चुनाव लड़ा और जीते हालांकि चुनाव के बाद उन्होंने इस सीट को छोड़ दिया था। 2009 में कांग्रेस की ओर से प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर ने चुनाव जीता और 2014 में समाजवादी पार्टी नेता रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव ने यहां से बड़ी जीत हासिल की। 2011 की जनसंख्या के आंकड़ों को मानें तो फिरोजाबाद क्षेत्र में 15 फीसदी से अधिक मुस्लिम जनसंख्या है, यानी मुस्लिम मतदाता यहां पर निर्णायक स्थिति में हैं।
हालाँकि पूर्व में अखिलेश ने अपनी पत्नी डिंपल यादव के लिए छोड़ दी थी यह सीट
- 2014 के आंकड़ों के अनुसार यहां 16 लाख से अधिक वोटर हैं।
- इनमें 9 लाख से अधिक पुरुष और 7 लाख से अधिक महिला मतदाता हैं।
- 2019 के चुनाव में भी इस सीट पर मुस्लिम, जाट और यादव वोटरों का समीकरण बड़ी भूमिका निभा सकता है।
- सूत्रों की मानें तो शिवपाल खेमा फिरोजाबाद को जातीय व सामाजिक समीकरण के साथ ही मुलायम कुनबे के अंदरूनी हालात की वजह से भी मुफीद मान रहा है।
- 1999 से फिरोजाबाद पर सपा का ही कब्जा (2009 के उपचुनाव को छोड़कर) रहा है।
- 2009 में अखिलेश यादव यहां से लोकसभा चुनाव जीते थे।
- हालांकि, उन्होंने यह सीट अपनी पत्नी डिंपल यादव के लिए छोड़ दी थी।
- उपचुनाव में डिंपल यह सीट नहीं बचा पाई और सपाई से कांग्रेसी हुए राजबब्बर से चुनाव हार गईं।
रिपोर्ट- संजीत सिंह सनी
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