उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले में आस्था संकल्प की सिद्धि के प्रेरक स्वरूप सुल्तानपुर की दुर्गा पूजा है. दुर्गा माँ के लगने वाले सभी रूपों के पंडाल जगत जननी मां के प्रति सुल्तानपुर की असीम श्रद्धा का जीवंत उदाहरण है और शायद यही कारण है कि इस जगह दुर्गा मां का पंडाल इतने दिनों तक अपनी आस्था को संजोए हुए है।
दुर्गा के सभी रूपों के लगते हैं पंडाल:
स्थानीय लोगों ने बताया कि साल 1959 में पहले दुर्गा प्रतिमा चौक पर स्थापित बड़ी दुर्गा मां से इसका आगाज़ हुआ था।
आज नगर क्षेत्र से मिलाकर देखा जाए तो 300 से अधिक मन मोहक मूर्तियां अपनी छवि बिखरे हुए हैं। पूजा पंडाल के संपत्ति द्वारा भंडारे का भी आयोजन किया जाता है।
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शहर के मध्य नव दुर्गा विराजमान है, वही प्यागीपुर चौराहा पर मां विंध्यवासिनी विराजमान. इसी प्रकार से माँ के सभी रूपो के पंडालो का यहाँ अद्भुत नजारा देखने को मिलता है।
शक्तिपीठों का संगम:
महीनों पहले से इसकी तैयारियां शुरू हो जाती हैं. तैयारियों के बाद सुल्तानपुर के यह दुर्गा पंडाल विभिन्न शक्तिपीठों के संगम जैसा बन जाता है।
सुल्तानपुर में लगने वाली दुर्गा पूजा किसी भी शहर या क्षेत्र से लगने वाली दुर्गा पूजा से अत्यंत भिन्न है. वहीं अन्य क्षेत्रों की तुलना में काफी अधिक दिन तक लगने वाली दुर्गा पूजा है जो कि अपने आप में एक अद्भुत है।
खास बात यह है कि इसकी सुरक्षा और कोई नहीं स्वयं हनुमान जी और शनि देव महाराज संभालते हैं।
हनुमान जी और शनि देव करते हैं सभी पंडालों की सुरक्षा:
इसकी पुष्टि करने के लिये जब UttarPradesh.Org की टीम पहुंची तो पता चला कि ये शनि देव महाराज और बजरंग बलि हमेशा सभी दुर्गा पंडालो के आगे उनकी देख रेख करते है.
वहीं जब माँ की प्रतिमाओं के विसर्जन का समय आता है तो इनकी मूर्ति अन्य सभी पंडालो की मूर्तियों के आगे रहती है.
प्रशासन द्वारा सुरक्षा के लिहाज से श्रद्धालुओं को किसी भी प्रकार की दिक्कत ना हो इसलिए प्रशासन हर वक्त श्रद्धालुओं की अगवानी के लिए खड़ा रहता है।
प्रतिमा विसर्जन तक चलते हैं भव्य भंडारें:
विभिन्न दुर्गा पूजा की संपत्तियों से भंडारे का आयोजन किया जाता है, जिससे कोई गरीब भूखा नहीं सोता और सभी बड़े चाव से मां का प्रसाद लेते हुए मां के दर्शन करते हैं.
जगह-जगह लगने वाले भंडारे के प्रसाद से श्रद्धालुओं में ऊर्जा का संचार होता रहता है। इसी बीच कुछ ऐसे ही समूह होते हैं जो जब सब प्रतिमाओं का पूर्ण रूप से विसर्जन नहीं होता तब तक भंडारा करवाते रहते हैं.