चार माह पूर्व हई थी माँ से मुलाकात।
सुल्तानपुर। एक धर्म समुदाय के लोगों ने बीते दिनो महाराष्ट्र के पालघर में माब लीचिंग में सुशील गिरि महराज (35) को पीट-पीट कर मार डाला था। वो उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के चांदा कस्बे के मूल निवासी थी। जिसे प्यार से यहां के लोग ‘रिंकू दूबे’ नाम से पुकारते थे, घर वालों ने उनका नाम शिवनारायण दुबे रखा था। वो पांच भाई और एक बहन में सबसे छोटे थे। उनकी मौत की खबर पर हर कोई गमगीन है। आख़री बार चार माह पूर्व वो एक घंटे के लिए घर आए थे और मां से भिक्षा लेकर गए थे।
पिता की डांट से क्षुब्ध होकर घर छोड़ दिया था घर।
बीते 16 अप्रैल को महाराष्ट्र के पालघर में दो संतों व एक वाहन चालक की भीड़ द्वारा पीट-पीटकर निर्मम हत्या कर दी गई थी। इनमे एक संत सुशील गिरि महराज उर्फ ‘रिंकू दूबे’ जिले के चांदा कस्बे के मूल निवासी थे। 35 वर्षीय सुशील गिरि महराज ने 12 साल की उम्र में पिता की डांट से क्षुब्ध होकर घर छोड़ दिया था। ये बात वर्ष 1997 की है तब वो कक्षा छह में पढ़ते थे। पिता की डांट के बाद घर से निकलकर वो अपने ननिहाल पट्टी प्रतापगढ़ चले गए और वहां से बिना किसी को बताए प्रतापगढ़ रेलवे स्टेशन गए और एक ट्रेन पर बैठ गए। जिस ट्रेन पर वो बैठे थे वो उन्हे लेकर मुंबई पहुंच गई। यहां उनकी भेंट जूना अखाड़े के कुछ संतों से हो गई जिससे वे साधुओं के अखाड़ा में पहुंचे। वहां रामगिरि महाराज से दीक्षा लेकर पूजा पाठ में रम गए।
2005 में कानपुर में मिला था भाई से।
मृतक के भाई ने बताया कि पूरे आठ साल के बाद 2005 में वह कानपुर एक सत्संग में आया था। वहां उनके बचपन के मित्र ज्वाला दूबे से उनकी भेंट हुई, उसने बहुत समझाया बुझाया तो वह घर आया और कुछ दिन रहकर चला गया। इसके बाद से बराबर उसका आना जाना था। आखरी बार वर्ष 2019 नंबर-दिसंबर माह में वो यहां पास के एक गांव में आयोजित एक विवाह समारोह में शामिल होने आए थे, तब लगभग एक घंटा घर पर भी थे। उसके बाद रात में वापस चले गए थे उनकी बाबतपुर हवाई अड्डे से फ्लाइट थी।
परिजनों ने घटना को मोबाइल पर देख लगाया था फोन।
मृतक के भाई शेष नारायण दुबे ने बताया कि उनके देहांत की सूचना फेसबुक पोस्ट के माध्यम से मिली। 17 अप्रैल को जब मोबाइल पर देखा कि सुशील गिरी कि हत्या हुई है तब फोन लगाया तो मोबाइल आफ था। 16 को शाम में भाई से बात हुई थी बताया के सूरत जा रहे हैं गुरुजी का देहांत हुआ है। मुम्बई में हमारे दो भाई, बड़े वाले और तीसरे नंबर वाले मौजूद थे। वो लोग अंतिम संस्कार में शामिल होना चाहते थे लेकिन पास नही बनने के कारण शामिल नही हो सके।