राम मंदिर – एक ऐसा विषय जो हमेशा से ही भारतीय राजनीति में प्रासंगिक रहा है. किसी के लिए यह राम मंदिर है, किसी के लिए बाबरी मस्जिद तो किसी के लिए मात्र एक विवादित ढांचा. जहाँ एक तरफ राम मंदिर से लाखों-करोड़ों लोगों की आस्था जुड़ी है वहीँ दूसरी ओर सालों से चल रहे इस विषय से जुड़े है सैकड़ों किस्से. इन्हीं किस्सों में से एक है ‘चमत्कारी बंदर’ का किस्सा.
जब खुल गए विवाद के दरवाजे:
1 फ़रवरी 1986 को अदालत ने राम मंदिर के ताले खोलने के आदेश जारी किये. फैज़ाबाद जिला न्यायधीश के.एम. ने अपने फैसले से पहले कहा कि ताले खोलने का फैसला किसी भी तरह से मुस्लिमों को प्रभावित नहीं करता. लिहाज़ा मस्जिद के अंदर रखी मूर्तियों का दर्शन और पूजन किया जा सकता है इससे कोई कयामत नहीं आने वाली. जस्टिस के.एम. पांडेय ने 36 साल से चली आ रही स्थिति में बदलाव करते हुए तालों को खोलने के आदेश जारी कर दिए.
जस्टिस के.एम. पांडेय की बातें तब गलत साबित हुई जब दिल्ली, मेरठ, उत्तर प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग सहित कई इलाकों में दंगे भड़क उठे. मुस्लिम समूहों ने जब 14 फ़रवरी 1986 को इस दिन काला दिवस मनाया.
सरकार ने की थी ताला खोलने की वकालत:
कोर्ट में हो रही सुनवाई के दौरान केंद्र के राजीव गाँधी की सरकार के दो अधिकारियों और प्रदेश की नारायण दत्त तिवारी की सरकार ने ताला खोलने की वकालत की. उनका कहना था कि ताला खोलने से कानून व्यवस्था पर कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा. कोर्ट में उनका यह वक्तव्य चौकाने वाला था क्योंकि खुद पंडित अभिराम दास ने इस जगह को पूजा करने के लिए अपवित्र घोषित किया था.
बता दे कि पुलिस की एफआइआर के अनुसार जब 23 दिसम्बर 1949 को मस्जिद में राम लला की मूर्ति रखी गई तब नामजद तीन लोगों में पंडित अभिराम दास भी शामिल थे. कथित चमत्कार की घटना के बाद लोगों ने अभिराम दास को ‘उद्धार बाबा’ कहना शुरू कर दिया था.
[penci_blockquote style=”style-1″ align=”none” author=””]राम मंदिर, जस्टिस पाण्डेय और काले बंदर का किस्सा[/penci_blockquote]
चमत्कारी बंदर ने फ़ैसला सही ठहराया:
अपनी आत्मकथा में जस्टिस के. एम. पांडेय ने लिखा है कि एक बंदर उन्हें देवता कि तरह लगा और उसने उनके फैसले पर मुहर लगाई. जस्टिस पांडेय की किताब के अनुसार जिस दिन मंदिर के तालों को खोलने का आदेश जारी किया गया, एक काला बंदर कोर्ट रूम की छत पर पूरे दिन फ्लैग पोस्ट को थामे बैठा रहा था. फैसले को सुनने के लिए वहां मौजूद अयोध्या और फैजाबाद के हजारों लोगों ने उस वानर की तरफ मूंगफली और फल फेंके. हैरत की बात यह रही कि उस बंदर ने किसी भी चीज को हाथ नहीं लगाया।
शाम के 4:40 बजे जैसे ही आदेश जारी हुआ, वह बंदर कोर्ट से चला गया.
फैसले के बाद जिला मजिस्ट्रेट और एसएसपी जस्टिस पांडेय के साथ उनके बंगले तक साथ गए. वह बंदर जस्टिस पांडेय के बंगले के बरामदे में मौजूद मिला. जस्टिस पांडेय उसे देखकर अचंभित रह गए. उन्होंने समझा कि वह कोई दैवीय शक्ति है, इसलिए उन्होंने उस बंदर को प्रणाम भी किया।
फ़ैसले के आधे घंटे बाद टूटा ताला:
फ़ैसला आने के आधे घंटे के बाद ही बाबरी मस्जिद के मुख्य द्वार का ताला तोड़ दिया गया. ताला टूटने की इस घटना को दूरदर्शन के माध्यम से पूरे देश ने देखा. 1 फ़रवरी 1986 को बाबरी मस्जिद एक्शन कमिटी का गठन हुआ और इसके संयोजक युवा वकील ज़फ़रयाब गिलानी बनाए गए.
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