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बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया गया मकर संक्रांति का त्यौहार

The festival of Makar Sankranti was celebrated with great enthusiasm 3

बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया गया मकर संक्रांति का त्यौहार

मकर संक्रांति में मकर शब्द आकाश में स्थित तारामंडल का नाम है जिसके सामने सूर्य के आने के दिन ही पूरे दिवस मकर संक्रांति मनाया जाता है। पंजाब, हरियाणा, दिल्ली में लोहड़ी के नाम से यह उत्सव मनाया जाता है। सूर्य के मकर राशी में प्रवेश से एक दिन पूर्व। यह उत्सव सूर्य का उत्तरायण में स्वागत का उत्सव है। उत्तरायण का अर्थ है पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव के सापेक्ष में स्थित आकाश का भाग अर्थात उत्तरी अयन।

फसलों से आई समृद्धि को मनाने का है यह उत्सव

फसलों से आई समृद्धि को मनाने का उत्सव है यह। ऋतु परिवर्तन के समय मनुष्य की रोग प्रतिरोधक क्षमता घटती है। इसीलिए उसके बीमार होने की संभावना बढ़ जाती है। ऐसे में उस प्रकार के पदार्थों का सेवन किया जाता है जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता की वृद्धि हो। भारत के बाहर झांके तो आपको दुनियाँ के किसी भी प्राचीन सभ्यता में ग्रहों, नक्षत्रों, राशियों, उपग्रहों का विस्तृत ज्ञान नहीं मिलेगा।

सनातन धर्मियों को सूर्य ग्रहण व चंद्र ग्रहण का भी था ज्ञान

हमारे सनातन धर्मियों को लाखों वर्षों से सूर्य संक्रांति का ज्ञान था। साथ ही सूर्य ग्रहण का ज्ञान भी था। हम सैकड़ों वर्ष पहले ही अपनी गणितीय क्षमता से जान लेते थे कि सूर्य ग्रहण कब, किस दिन, कितने घंटे, कितने पल और कितने विपल पर होगा? कितने क्षण में ग्रहण का स्पर्श होगा और कितने निमेष पर ग्रहण का मोक्ष होगा? हमें चंद्र ग्रहण का ज्ञान भी था। चंद्र ग्रहण का विस्तृत ज्ञान हम बहुत समय पूर्व ही कर लिया करते थे। सूर्य की बारह महीनों में बारह संक्रांति होती है।

लिप ईयर की हुई थी परिकल्पना

इस प्रकार पूरे एक वर्ष में बारह महीनों में बारह राशियों का भ्रमण करते हुए सूर्य अपना एक वर्ष पूर्ण कर लेता है। यूरोप वालों को बड़े लंबे प्रयोग के बाद, बड़ी लंबी साधना के बाद सूर्य की गति का बहुत थोड़ा ज्ञान हुआ तो उनलोगों ने अपने आठ महीने के ग्रेगोरियन कैलेंडर को ठीक करके पहले दस महीने का किया। बाद में दो महीने और जोड़कर बारह महीनों का किया। इतने लंबे समय तक कि पूरी यूरोपियन यात्रा में उनको इतना ही पता चल पाया कि सूर्य की पूरी परिक्रमा 365 दिनों की है। बहुत बाद में उनको पता चला कि 365 दिनों के अतिरिक्त भी 6 घंटे का और समय होता है एक सौर वर्ष में।

अरब वालों का होता है 336 दिनों का वर्ष

अरब वालों को चांद के आगे का ज्ञान ही नहीं था। सूर्य का थोड़ा ज्ञान हुआ भी तो बड़ा भ्रमपूर्ण ज्ञान था। उन्होंने चंद्रमा की गति के आधार पर अपना कैलेंडर बनाया। यह इंदु अर्थात चंद्रमा की गति पर आश्रित था। इसी इंदु से इदु और इदु से शब्द इद्दत बना। किन्तु वो गिनती में गड़बड़ कर गए। और चंद्रमा की गति के आधार पर ईद देखकर अर्थात इंदु देखकर अर्थात चांद देखकर महीना गिनने लगे। बारह महीनों की बात भारत के व्यापारियों से उनको पता चली थी तो उन्होंने चांद के बारह महीने गिन लिए। अर्थात 28×12=336 दिनों का वर्ष बना लिया।

भारत के ऋषियों ने काल गणना को बड़े गहराई से समझा

किन्तु भारत के ऋषियों ने दोनो ही प्रकार के काल गणना को बड़े गहराई से समझा। तभी समझ लिया जब ईसाईयत और इस्लाम का जन्म भी नहीं हुआ था। उनके लाखों वर्ष पूर्व ही समझ लिया। और जब सनातनी ऋषियों ने अपना कैलेंडर अर्थात अपना पञ्चाङ्ग बनाया तो उनलोगों न तो सौर पञ्चाङ्ग बनाया और न ही चांद्र पञ्चाङ्ग बनाया। हमारे ऋषियों ने जो पञ्चाङ्ग बनाया वह सौर पञ्चाङ्ग और चांद्र पञ्चाङ्ग का सम्मिलित स्वरूप है।

रिपोर्ट – संजीत सिंह सनी

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