उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिला में तीन थाना प्रभारियों पर पता नहीं कौन से अदृश्य शक्ति का साया है कि उनकी कुर्सी हिलाने में बड़े-बड़े दिग्गजों के पसीने छूट रहे हैं। यह तीनों थानेदार अंगद के पैर की तरह अपनी कुर्सी जमाए बैठे हैं। सांसद प्रतिनिधि से लेकर पुलिस अधिकारी तक इनकी कुर्सी नहीं हिला पा रहे हैं। बताया जा रहा है कि कई बार जमे लोगों को रिलीज करने का एडीजी कार्यालय से आदेश जारी हुआ, पुलिस अधीक्षक को भी रिसीव हुआ, पुलिस अधीक्षक ने रिलीज ऑर्डर टाइप करवा कर प्रभारियों को भिजवाया। पता नहीं अचानक क्या हुआ कि कप्तान को रिलीज ऑर्डर दोबारा वापस मंगाना पड़ा। तब से सफेदपोश कुछ नेताओं के संरक्षण में ऊँची पहुँच रखने वाले थानेदार जमे बैठे हैं जिन्हें हिलाने की डीजीपी की हिम्मत नहीं पा रही है।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, जिले के सांसद साक्षी महाराज ने लोकसभा चुनाव के मद्देनजर पुलिस अधिकारियों को तत्काल रिलीज करके 3 वर्षों से अधिक समय से जनपद में तैनात पुलिस अधिकारियों को गैर जनपद भेजने के लिए आईजी जोन. एडीजी लॉ-एंड-आर्डर, डीजीपी को पत्र लिखकर अवगत करा चुके हैं। बताया जाता है कि एक पत्र मुख्यमंत्री को भी भेजा गया। लेकिन उसका भी कोई असर जनपद में नहीं दिखा। कर्तव्य-निष्ठा, ईमानदारी से गरीबों, बेबसों, मजदूरों किसानों का दुख-दर्द सुनने वाले अधिकारी, कर्मचारी, सत्ता दल के चुने गए जनप्रतिनिधियों, ठेकेदारों , चापलूसों की आंखों में किस तरह जहरीले डंक की तरह चुभते हैं। जिन्हें या कद्दावर हर तरह से गुणा गणित लगाकर स्थान तरण करा देते हैं। जबकि मलाई खिलाने वाले चापलूस सभी जरूरतों को पूरा करने वाले अधिकारी-कर्मचारी चाहे जितनी लूट खसूट करें, अधिकारियों को संरक्षण दे तो उन पर स्थानांतरण के बाद भी अपना हाथ रख कर संरक्षित कर देते हैं और मलाईदार कुर्सियों पर विराजमान कर जनता का खून चूसने की खुली छूट दे रहे हैं। ऐसा ही नजारा वर्तमान समय में उन्नाव जिला के पुलिस विभाग में देखने को मिल रहा है।
बता दें कि वर्तमान समय में सदर कोतवाली का पदभार संभाले प्रभारी निरीक्षक अरुण कुमार द्विवेदी जब गंगाघाट कोतवाली में रहे तो वहां अपनी अजीबोगरीब हरकतों एवं कार्यप्रणाली से सुर्खियों में रहे। जहां से बांगरमऊ कोतवाली का पदभार संभाला तो वहां भी कुछ ऐसा कर गुजरे कि कलमकारों ने बेशर्म खाकी के खिताब से नवाजा। वहीं दूसरी ओर उसी समय सदर कोतवाली में तैनात रहे प्रभारी निरीक्षक अपनी अवैध वसूली के चलते सुर्खियों में बने हुए थे। जिस पर जिले के आला पुलिस अधिकारियों ने शतरंज के मजे हुए खिलाड़ियों की तरह मात्र मुहरे बदल सदर कोतवाल को बांगरमऊ कोतवाली तथा बांगरमऊ कोतवाली सदर कोतवाली सौंप दी और दोनों जगह असंतुष्ट जनता नए कोतवाल के आने के बाग बाग हो गई। लेकिन जनता की यह खुशी कुछ ही दिनों में काफूर हो गई। जब दोनों प्रभारियों की असली कार्यशैली जनता के सामने उजागर हुई और अपराध कम नहीं हुए।
पुलिस सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, बांगरमऊ कोतवाली में तैनाती के दौरान ही वर्ष 2017 में आईजी परिक्षेत्र कार्यालय से बांगरमऊ कोतवाली अरुण कुमार द्विवेदी का स्थानांतरण हो गया था। परंतु द्विवेदी का उन्नाव से कुछ विशेष लगाव रहा। लिहाजा उन्होंने अथक प्रयासों के बाद हाईकोर्ट में रिट दाल 6 माह का स्टे ले लिया। लेकिन 6 माह का समय व्यतीत होते ही पुनः आईजी कार्यालय से कोतवाल द्विवेदी के रिलीज का आर्डर हो गया। परंतु किसी कद्दावर माननीय की अनुकंपा के चलते पुलिस अधीक्षक ने रिलीज ऑर्डर डस्टबिन में डाल दिया और अरुण द्विवेदी कोतवाल सदर चलाते रहे।
वहीं, दूसरी और गंगाघाट कोतवाली प्रभारी निरीक्षक हर प्रसाद अहिरवार का 14 अप्रैल 2018 को डीजीपी का लखनऊ मुख्यालय स्थानांतरण कर दिया गया था।जबकि आसीवन थाना प्रभारी जयशंकर सिंह का बरेली के लिए स्थानांतरण किया गया था। किंतु उक्त तीनों प्रभारी आज भी अपने विवादित कार्यशैली को लेकर सुर्खियों में बने होने के बावजूद कुर्सियों पर आसीन हैं और अपने सफेदपोश शिक्षकों के साथ खुद भी मलाई खा रहे हैं। बात अगर कानून व्यवस्था की करें तो सदर कोतवाली तथा गंगाघाट कोतवाली क्षेत्र में आए दिन हो रही लूट, फायरिंग, चेन, स्नेचिंग, हत्या अज्ञात लाशों की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही है। इस क्षेत्र में जुआ के अड्डे, कसीनो, मादक पदार्थों की तस्करी खुलेआम हो रही है। जबकि आसीवन थाना प्रभारी वाहनों से अवैध वसूली के लिए पिछले कई महीनों से सुर्खियों में बने हुए हैं। ये थाना अवैध बूचड़खानों, गोवंश की तस्करी के लिए भी कुख्यात है। लेकिन अवैध वसूली में व्यस्त तीनों थाना प्रभारियों के खिलाफ आज तक कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है।
पुलिस सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, स्थानांतरण के बावजूद प्रभारी निरीक्षक की कुर्सी पर जमे लोगों को रिलीज करने का एडीजी कार्यालय से आदेश जारी हुआ जो कि पुलिस अधीक्षक को रिसीव हुआ। पुलिस अधीक्षक ने आनन-फानन में उच्चाधिकारियों के आदेश पर अमल करते हुए रिलीज ऑर्डर टाइप करवा कर प्रभारियों को भिजवाया। परंतु पता नहीं अचानक क्या हुआ कि कप्तान को सदर कोतवाल प्रभारी का ऑर्डर वापस मंगाना पड़ा। विभाग में आज उसकी चर्चाएं जोरों पर है। सूत्रों की मानें तो सदर कोतवाल अरुण कुमार द्विवेदी पिछले 12 वर्षों से जहां भी रहे हमेशा चार्ज पर रहे। चाहे सरकार किसी की भी रही हो अगर वह सच है तो मानना पड़ेगा कि सदर कोतवाल पुलिस विभाग के माहिर अधिकारी होने के साथ-साथ राजनीति के चाणक्य हैं। क्योंकि हर सांचे में फिट बैठने की अद्भुत क्षमता सभी के पास नहीं होती।
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