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पूर्वोत्तर राज्यों में सीएम योगी के चुनावी दौरों की बम्पर मांग

पूर्वोत्तर राज्यों में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जनसभाओं की मांग बढ़ती दिखाई दे रही है। अपने “महंत” को त्रिपुरा बुला रहा है। इस संबंध में कम से कम आधा दर्जन दौरों की डिमांड आई हुई है। असम त्रिपुरा के प्रभारी सुनील देवधर के मुताबिक, अभी तक योगी आदित्यनाथ के दौरे की तारीख तय नहीं हो पाई है। लेकिन वह निश्चित रूप से प्रचार के लिए यहां आएंगे। त्रिपुरा की आधी आबादी गुरु गोरखनाथ को मानने वालों की है, जिसके महंत योगी आदित्यनाथ हैं। त्रिपुरा में पिछले ढाई दशक से माकपा की सरकार है और माणिक सरकार 20 साल से मुख्यमंत्री हैं।

पहली बार त्रिपुरा पहुंचेगे भाजपा नेता

माकपा के अभेद्य किले को फतह करने के लिए भाजपा ने पूरी ताकत झोंकने की तैयारी कर ली है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह समेत लगभग आधा दर्जन केंद्रीय मंत्री चुनावी रैलियों के साथ-साथ रोडशो भी करेंगे। फिलहाल उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के चुनावी दौरे की तारीख तय नहीं हुई है। पहली बार त्रिपुरा जैसे छोटे से राज्य में भाजपा के इतने बड़े नेता चुनाव प्रचार के लिए पहुंचेंगे।

प्रधानमंत्री की भी हैं दो रैलियां

60 विधानसभा सीटों वाले त्रिपुरा में प्रधानमंत्री दो रैलियां और एक रोडशो करेंगे। आठ फरवरी को प्रधानमंत्री दो रैलियों को संबोधित करेंगे। इसके बाद 15 फरवरी को वह राज्य की राजधानी अगरतला में रोडशो करेंगे। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह 11 फरवरी से चुनाव के दिन 18 फरवरी तक त्रिपुरा में ही रहेंगे। त्रिपुरा में भाजपा पहली बार बड़ी चुनौती बनकर उभरी है और वह कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती।

5 फरवरी को स्मृति ईरानी फूंकेगी बिगुल

भाजपा के लिए चुनावी समर का बिगुल सूचना प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी पांच फरवरी को ही फूंकेंगी। उस दिन वह पांच विधानसभा क्षेत्रों में रोडशो करेंगी। अगले ही दिन सड़क, परिवहन व राजमार्ग मंत्री नीतिन गडकरी त्रिपुरा में रोडशो करेंगे। इसके बाद सात फरवरी को गृह मंत्री राजनाथ सिंह सात विधानसभा क्षेत्रों में रोडशो करेंगे। 10 फरवरी को रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी रोडशो करेंगे।

नगालैंड में चुनाव टलने की उम्मीद नहीं

नगालैंड शांति समझौते के जल्द क्रियान्वयन के लिए दवाब बनाने के तहत विधानसभा चुनाव बहिष्कार की रणनीति के सफल होने की उम्मीद कम है। भाजपा के क्षेत्रीय नेताओं ने भले ही चुनाव बहिष्कार की अपील पर दस्तखत किए हों, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व समय पर चुनाव के पक्ष में है। यही नहीं, चुनाव बहिष्कार की मांग को सबसे अधिक तवज्जो देने वाली नगा पीपुल्स फ्रंट ने भी साफ कर दिया है कि चुनाव प्रक्रिया शुरू होने के बाद उसमें भाग लेना उनकी मजबूरी हो जाएगी। दरअसल, भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व नगालैंड में चुनाव को ढाई साल पहले हुए प्रधानमंत्री के आवास पर एनएससीएन (आइएम) के साथ हुए ऐतिहासिक शांति समझौते के रोडमैप को आसानी से लागू कराने के अवसर के रूप में देख रहा है। लेकिन एनएससीएन (आइएम) दबाव बनाने के लिए चुनाव बहिष्कार का दबाव बना रहा है। सोमवार को जिस कोर कमेटी ऑफ नगालैंड ट्राइबल होहो एंड सिविल ऑर्गनाइजेशन (सीसीएनटीएचसीओ) की बैठक में चुनाव बहिष्कार का फैसला किया गया। उसी सीसीएनटीएचसीओ की दो दिन पहले एनएससीएन (आइएम) के नेताओं के साथ बैठक हुई थी। 11 दलों के एक साथ चुनाव बहिष्कार के एलान के तत्काल बाद भाजपा केंद्रीय नेतृत्व हरकत में आया।

नगालैंड में चुनाव संवैधानिक प्रक्रिया

केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू ने मंगलवार को कहा कि चुनाव संवैधानिक प्रक्रिया हैं और केंद्र सरकार के लिए संविधान का पालन अनिवार्य है। एक दिन पहले ही नगालैंड के सभी राजनीतिक दलों ने 27 फरवरी को होने वाले चुनाव का बहिष्कार करने का फैसला लिया है। उनकी मांग है कि पहले नगाओं की राजनीतिक समस्या का समाधान किया जाए। नगालैंड में भाजपा के चुनाव प्रभारी रिजिजू ने एक के बाद एक ट्वीट करके कहा कि काफी समय से लंबित नगा समस्या को केंद्र सरकार बेहद महत्वपूर्ण मानती है।

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