इसमें कोई शक नहीं कि मथुरा में जो कुछ हुआ, उसमें वहां की कानून-व्यवस्था की निष्क्रियता या यूँ कहिये कि कार्यवाही ना कर पाने में असमर्थता रही। किसके संरक्षण के कारण रामवृक्ष यादव जवाहरबाग में अपनी हुकूमत चलाता रहा? कौन जिम्मेदार था इस हिंसा के लिए? किसकी गलती से से मारे गए बहादुर अफसर?
इन सारे सवालों के जवाब की का जवाब वो खुफिया इनपुट दे रहे हैं जो बताते है कि कैसे एक-दो बार नहीं, बल्कि 80 बार खुफिया एजेंसियों द्वारा अलर्ट के बावजूद अखिलेश यादव की सपा सरकार और वहां की पुलिस के कान पर जू नहीं रेंग पाया। यहाँ तक कि घटना के एक दिन पूर्व भी ख़ुफ़िया एजेंसियों ने चेतावनी दी थी।
इंटेलिजेंस यूनिट बार-बार सरकार और पुलिस को चेतवानी देती रही। जवाहरबाग में तैनात पुलिसकर्मियों को भी मालूम था कि रामवृक्ष उनके लिए बड़ी मुसीबत बन चूका है। ये मथुरा का वो सच है जिसमें दो पुलिस ऑफिसर्स के अलावा 27 अन्य की जान गई थी।
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि ये इंटेलिजेंस का फेल्योर था। लोकल इंटेलिजेंस ने तो पल-पल की जानकारी सरकार को दी थी, लेकिन सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। राज्य सरकार कोर्ट के निर्देश के बावजूद पुलिस को बड़ी टीम और पूरी तैयारी से क्यों नहीं भेज पायी जवाहर बाग़ में और पुलिस के पास सर्विलांस का तरीका भी था तो उसे इस्तेमाल क्यों नहीं किया गया। ये कई ऐसे सवाल हैं जो आज लोगों की जुबान पर हैं मथुरा हिंसा के बाद, क्योंकि दो साल से रामवृक्ष अपना साम्राज्य बढ़ते चला गया और किसी को कानो-कान खबर नहीं हुई, ये बात हजम नहीं हो रही है।
आज तक की एक खबर के मुताबिक, इंजेलिजेंस यूनिट के मुखिया मुन्नी लाल गौर ने बताया कि जैसे-जैसी परिस्थितियां आईं, हमने यूपी सरकार को एक दो बार नहीं बल्कि पूरे 80 बार जवाहरबाग का इनपुट भेजा। मुन्नी लाल गौर इंटेलिजेंस यूनिट में बतौर इंस्पेक्टर तैनात हैं।
इंटेलिजेंस विभाग पर आरोप मढ़कर अखिलेश सरकार ने खुद को बचाने की कोशिश की लेकिन अब सवाल उठ रहे हैं कि अखिलेश सरकार रामवृक्ष को लेकर मौन क्यों थी? क्या कोई राजनीतिक संरक्षण क़ानूनी कार्यवाही करने के आड़े आ रहा था या फिर सपा सरकार को प्रदेश की जनता की चिंता नहीं या फिर रामवृक्ष यादव के आगे सरकार और पुलिस नतमस्तक हो चुकी थी जिसमें २९ लोगों को अपनी जान गवांनी पड़ी।