डॉ.राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में उत्तर प्रदेश की प्रोवेन्शियल मेडिकल सर्विसेज एसोसिएशन की राज्य कार्यकारिणी की बैठक हुयी। जिसमें तकनीकी और व्यवहारिक आधारों के परखे बिना राजकीय चिकित्सा स्वास्थ्य सेवाओं में स्वेच्छाचारी प्रयोग करने और अनियंत्रित प्रयोगशाला बनाये जाने की प्रवृत्ति पर चिन्ता व्यक्त की गयी है। एसोसिएशन की राज्यकारिणी की बैठक में सरकार से यह मांग की गयी है कि राज्य में चिकित्सा एंव स्वास्थ्य सेवाओं को सुधारने के लिए पूर्वाग्रह मुक्त समीक्षा कर तकनीकी आधारों पर प्रमाणित,व्यवहारिक उपाये किये जाने की आवश्यकता है।
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खस्ता हाल चिकित्सा व्यवस्था पर हुयी चर्चा
- उत्तर प्रदेश प्रोवेन्शियल मेडिकल सर्विसेज एसोसिएशन के महामंत्री डॉ.अमित सिंह ने जानकारी दी।
- राजकीय चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाओं में लगे चिकित्सकों तथा चिकित्साकर्मियों पर कार्य का बोझ मानकों से ज्यादा है।
- स्थायी चिकित्सकों तथा स्थायी कर्मियों की भारी कमी है। बीते कई सालों से स्थायी पदों को नही भरा गया है।
- डॉ.आशुतोष कुमार दुबे ने कहा कि केवल काम चलाऊं व्यवस्था के तहत संविदा पर मानक विहीन व्यवस्था निर्मित की गयी है।
- जो काफी खतरनाक साबित हो सकती है। संविदा तथा ठेके पर बिना प्रशिक्षण प्राप्त लोग भी कार्य कर रहे हैं।
- साथ ही उनमें जिम्मेदारी की सोच भी कम दिखाई देती है।
- इसका एक कारण उनको मिलने वाला वेतन भी है।
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- एक तरफ स्थायी कर्मचारी को 30 हजार वहीं ठेके पर काम करने वाले कर्मचारी को 10 हजार रुपये चिकित्सा कार्यो में विघ्न डाल रहा है।
- राज्य में 22 करोड़ की जनसँख्या के लिए भारतीय जनस्वास्थ्य के मानक अनुरूप 42 हजार स्वास्थ्य केन्द्र होने चाहिए।
- प्रति उपकेन्द्र पर 2 स्वास्थ्य कर्मियों की नियुक्ति के मानक के अनुसार 84 हजार स्थाई स्वास्थ्य कार्यकर्ता यूपी में होने चाहिए।
- जिसके सापेक्ष केवल 22 हजार स्वास्थ्य उपकेन्द्र ही राज्य में स्थापित है।
- कुल मिला कर बेसिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की तीन चौथाई कमी है।
- इस अवसर पर एसोसिएशन ने 2017 मेंं चिकित्सकों के स्थानान्तरण पर सवाल उठाये।
- स्थानान्तरण नीति एवं मानव संपदा सॉफ्टवेयर की खामियों को दूर करने की मांग की।
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