केजीएमयू के पूर्व कुलपति प्रो रविकांत पर आय-व्यय में नियमों की अनदेखी, वित्तीय अनियमितताएं करने, नियुक्तियों और प्रोन्नति में फर्जीवाड़े के आरोप लगे थे। केजीएमयू की कार्य परिषद के निर्वाचित सदस्यों की ओर से इसकी शिकायत प्रदेश के राज्यपाल व कुलाधिपति राज्यपाल रामनाईक से की गयी थी। हालाकि पूर्व कुलपति की इन कारनामों का खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है।
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मनमाने ढंग से काम करने के लगे थे आरोप
- आपको बता दें कि पूर्व कुलपति प्रो. रविकांत पर कार्य परिषद की अनदेखी कर मनमाने ढंग से काम करने की बात कहीं गयी थीं।
- साथ ही पूरे मामले की जांच किसी स्वतंत्र एजेंसी के माध्यम से कराने की मांग भी की गयी थीं।
- राज्यपाल को दिये गए पत्र में केजीएमयू में अधिनियम के निहित प्रावधानों का हवाला देते हुए उसके विरुद्ध आय-व्यय में घपले के आरोप लगे थे।
- कुलपति प्रो. रविकांत पर करोडों रुपये का आय-व्यय मात्र उनकी इच्छानुसार करने के आरोप थे।
- साथ ही कार्य परिषद को इस बारे में कोई भी जानकारी नहीं दी जा रहीं थी।
- बीजेपी सांसद कौशल किशोर एवम सतर्कता विभाग के पत्रों के आने के बाद जांच के आदेश हुए थे।
- वही कैग ने भी प्रो.रविकांत पर फर्जीवाड़ों के चलते सवाल उठाये थे।
- आपको बता दें कि मौजूदा समय में प्रो.रविकांत ऋषिकेश एम्स के निदेशक हैं।
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निजी वेंडरों की होती थी करोडों की कमाई
- वर्तमान में केजीएमयू में पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के आधार पर दो सीटी स्कैंन, एक एमआरआई सहित कई उपकरण लगे है।
- जानकारी के अनुसार अकेले केजीएमयू में दो सीटी स्कैन मशीनों पर 100 से 150 के करीब सीटी किसे जाते है।
- जिसका औसतन शुल्क 1500 के करीब है। प्रतिदिन अकेले सीटी स्कैन से आमदनी डेढ से दो लाख होती है।
- जिससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि अकेले एक जांच से प्रति करोडों की आमदनी होती है।
- जानकारी के अनुसार अनुबंध के मुताबिक इस आमदनी को 47 पफीसद सेवा प्रदाता संस्था यानि निजी वेंडरों को मिलता है।
- जबकि मात्र 16 पफीसदी ही केजीएमयू के हिस्से में आता है।
- जिसे किसी भी रुप में उचित नहीं ठहराया जा सकता है।
- अगर ये उपकरण केजीएमयू के होते ते उसे अधिक से अधिक लाभ मिलता और रोगियों को राहत।
- लेकिन, पूर्व कुलपति की लापरवाही और चालाकियों के चलते रोगियों को नुकसान उठाना पड़ रहा था।
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