बच्चों को भगवान का रूप माना जाता है। लेकिन (child labour increase) कारखानों, फैक्ट्रियों, रेलवे स्टेशन, होटलों, ढाबों पर काम करने से लेकर कचरे के ढ़ेर में कुछ ढूंढता मासूम बचपन आज न केवल 21वीं सदी में भारत की आर्थिक वृद्धि का एक स्याह चेहरा पेश करता है। बल्कि आजादी के सदियों बाद भी सभ्य समाज की उस तस्वीर पर सवाल उठाता है।

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  • जहां हमारे देश के बच्चों को हर सुख सुविधाएं मिल सके पढ़े-लिखे बाबू से लेकर अनपढ़ मजदूर तक, हर कोई चाहता है कि उसका बच्चा पढ़-लिख जाये।
  • समाज का ऐसा वर्ग जो सदियों तक विद्या से वंचित रहा वह सोच रहा है कि शिक्षा मिल गयी।
  • तो न जाने उनके बच्चे कहां पहुंच जायेंगे निश्चित ही हमारे समाज में शिक्षा के प्रति आग्रह बढ़ता जा रहा है।
  • लेकिन वहनीय शिक्षा तो दूर वंचित वर्ग के बच्चे आज मजदूरी करने को विवश हैं।

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मासूम बच्चों का जीवन खुशियों से भरा?

  • एक कटु सत्य यह भी है कि मासूम बच्चों का जीवन कहीं तो खुशियों से भरा है।
  • तो कहीं छोटी से छोटी जरूरतों से भी महरूम है।
  • बच्चों के हाथों में कलम और आंखो में भविष्य के सपने होने चाहिए।
  • लेकिन दुनिया में करोड़ों बच्चे ऐसे हैं, जिनकी आंखो में कोई सपना नहीं पलता।
  • बस दो जून की रोटी कमा लेने की चाहत पलती है।
  • एक सभ्य समाज के बच्चे को बहेतरीन शिक्षा और सभी सुख सुविधाएं मुहैया होनी चाहिए।
  • हमारे देश के हर कोने में पलने वाले हर बच्चे को शिक्षा और उसकी जरूरत की हर सुख सुविधा मुहैया होनी चाहिए।

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अमेठी में यहां सिसक रहा बचपन

  • घर से भागकर गलत हाथों में पड़ने वाले मासूमों को रेस्क्यू कर वापस उनके घर तक पहुंचाने या फिर उनको सही रास्ते पर लाने के लिए प्रदेश सरकार के आदेश पर चलाया जा रहा आपेशन मुस्कान राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र अमेठी में ही औंधे मुंह गिर गया है।
  • इस बात का खुलासा तब हुआ जब जगदीशपुर औधौगिक क्षेत्र रोड नम्बर 4 पर स्थित एक प्लाई वुड के कारखाने के अंदर गये एक व्यक्ति ने मजदूरी कर रहे मासूम बाल मजदूरों का वीडियो बना लिया।
  • जिसके देखने के बाद अमेठी में बाल मजदूरी का वो सच सामने आया जो शायद काफी लंबे वक्त से छुपा था।
  • अंदर खाने की खबर है कि जगदीशपुर इंडस्ट्रियल क्षेत्र में आज कई मजदूर बच्चों से बाल मजदूरी करायी जा रही है और जिम्मेदार महकमा मौन है।

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सर्व शिक्षा भी अभियान हो रहा बेमानी

  • अमेठी जनपद के किसी भी कोने में चले जाइये वहां पर आपको होटलों, ढाबों, दुकानों, घरों, गैराजों, फैक्ट्रियों कारखानों में गरीबों के बच्चे अपने बचपन को खाक में मिलाते दिख जायेंगे।
  • विडम्बना इस बात कि भी है कि इस कथित सभ्य और बड़े कहलाने वाले समाज के लोग भी बच्चों का शोषण करने में पीछे नहीं हैं।
  • ऐसे में सर्व शिक्षा अभियान भी बेमानी हो जाता है।
  • आज कारखानों फैक्टियों, ढाबों एवं ऐसे ही कार्यस्थलों पर बच्चों का नियोजन इसलिए भी किया जाता जा रहा है।
  • क्योंकि उनका शोषण बड़ी आसानी और सरलता से किया जा सकता है।
  • आज मासूम बच्चों का जीवन केवल बालश्रम तक ही सीमित नहीं बल्कि बच्चों की तस्करी और लड़कियों के साथ भेदभाव आज भी देश में एक विकट समस्या के रूप में हमारे सामने है।

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संस्थाओं का भी दिख रहा स्याह सच

  • बालश्रम रोकने के लिए न जाने कितनी संस्थाएं काम कर रही है लेकिन अफसोस तो यह है कि उसके बावजूद बालश्रम में कमी होती नजर नहीं आ रही है।
  • बच्चों को अभी भी अपने अधिकार पूरे तौर पर नहीं मिल पाते।
  • अनेक बच्चों को भर पेट भोजन नसीब नहीं होता।
  • स्वास्थ्य संबंधी देखभाल की सुविधाएं तो है ही नहीं और यदि हैं भी तो बहुत कम वहीं जब इस मामले को (child labour increase) लेकर जिलाधिकारी अमेठी से सम्पर्क करने की कोशिश की गयी तो जिलाधिकारी महोदय का फोन नहीं उठा।

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https://youtu.be/MeHWRNt6SPs

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