कासगंज हिंसा के बाद मृतक चंदन के परिवारीजन भी रोड पर उतर आए हैं। वह चंदन को शहीद का दर्जा देने की मांग रहे हैं। चंदन के परिवारीनजों ने कहा कि सीएम योगी आदित्यनाथ आएं और उनके लाल को शहीद का दर्जा दिलाएं। शहर में चंदक चौक बनाया जाए। हत्यारों को फांसी की सजा दी जाए। शुक्रवार से शुरू हुई हिंसा में कासगंज लगातार जलता रहा। शनिवार की रात भर उपद्रवी आगजनी की घटनाओं को अंजाम देते रहे।
उपद्रवियों ने रविवार सुबह भी एक दो जगह आगजनी की घटनाओं को अंजाम दिया। घर, कार, बाइक एंबुलेंस और मेडिकल स्टोर समेत तमाम दुकानों को आग के हवाले कर दिया। बवाल बढ़ने पर जिले भर में रविवार तक के लिए इंटरनेट सेवाओं पर रोक लगा दी गई है। डीजीपी ओपी सिंह ने अपने एक बयान में कहा है कि हालात नियंत्रण में है। क्षेत्र में तनावपूर्ण शांति है पुलिस बल तैनात है जो चप्पे चप्पे अपर नजर बनाये हुए है।
मुजफ्फरनगर दंगे के बाद फिर सुलगा पश्चिमी यूपी
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में 27 अगस्त 2013 से जाट और मुस्लिम समुदाय के बीच कवाल गांव में कथित तौर पर एक जाट समुदाय लड़की के साथ एक मुस्लिम युवक की छेड़खानी के साथ शुरू हुए दंगे में लड़की के परिवार के दो ममेरे भाइयों गौरव और सचिन ने शाहनवाज नाम के युवक को पीट-पीट कर हत्या किये जाने के बाद दंगा शुरू हुआ था पुलिस ने दोनों पक्षों के कई लोगों को गिरफ्तार किया था। इस दंगे में 25 से अधिक लोगों की जानें गई और करीब 50 लोग घायल हुए थे। बढ़ते बवाल को देखते हुए कर्फ्यू लगा दिया गया था और बवालियों पर काबू पाने के लिए सेना भी लगा दी गई थी। लेकिन इसके बावजूद भी हालात काबू में नहीं बल्कि गिड़ते गए थे।
मेरठ में भी जख्मी हुए थे 35-40 पुलिसकर्मी
इस मामले की आग ठंडी भी नहीं पड़ती थी कि एक माह बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश मेरठ जिले में आग भड़क उठी थी। यह लड़ाई पुलिस और जनता के बीच सीधे टकराव से हिंसा भड़की थी। यह बवाल भाजपा विधायक संगीत सोम की गिरफ्तारी और रासुका लगाने के विरोध में सरधना के खेड़ा गांव की महापंचायत में बीस हजार लोगों की भीड़ पुलिस से भिड़ गई थी। यह बवाल इस कदर बढ़ा कि कमिश्नर, डीएम, डीआईजी व एसएसपी की मौजूदगी में भीड़ ने 64 सरकारी गाडिय़ों और रोडवेज बसों में तोडफ़ोड़ कर 4 वाहनों को आग के हवाले कर दिया था। इस बवाल में एक दो नहीं बल्कि 35-40 पुलिसकर्मी जख्मी हुए थे।
पिछले वर्षों की तरह एक बार फिर फेल साबित हुआ प्रशासन
इन मामलों को लोग भुला भी नहीं पाये थे कि एक बार फिर पश्चिमी यूपी सुलग उठा। अबकी बार कासगंज जिले में तिरंगा यात्रा के दौरान इस कदर हिंसा बढ़ी कि एक युवक की जान जाने के साथ कई लोग बुरी तरह से घायल हो गए। युवक के अंतिम संस्कार के बाद जैसे ही धारा 144 खत्म हुई कि फिर उपद्रव बढ़ गया और बवालियों ने रोड ही नहीं जाम किया बल्कि आगजनी के अलावा सरकारी व गैर सरकारी वाहनों में जमकर तोडफ़ोड़ की। बवाल की खबर पाकर चार जनपदों की पुलिस फोर्स के अलावा आरएएफ, सीआरपीएफ व पीएसी को बुला लिया गया, लेकिन हालात काबू होने के बजाए बढ़ता गया। नतीजतन फोर्स उपद्रवियों के आगे पिछले वर्षों की तरह एक बार फिर फेल साबित हुई।
उपद्रवियों ने छीना लोगों का चैन
यूपी में अपराधियों का ही खौफ लोगों नहीं सता रहा है। बल्कि एक दूसरे की रंजिश में हो रहे खून खराबा भी लोगों का चैन छीन रहा है। साल-दर साल पश्चिमी उत्तर प्रदेश चाहे वह जनपद मेरठ, बागपद हो या फिर कासगंज जरा सही बात को लेकर एक दूसरे की जान लेने पर अमादा हो जा रहे हैं। इन बवाल के पीछे सियासी भुचाल भी पीछे नहीं इनकी भी कहीं न कहीं देन है? क्यों कि अपनी रोटी सेंकने के लिए कुछ भी कर सकते हैं? सवाल है कि अगर जनता पूरी तरह से समझ जाए तो किसी के बीच किसी तरह की शायद दरार पैदा नहीं होगी। वहीं यूपी में अपराधियों का मामला हो या फिर एक दूसरे के बीच रंजिश का हो। पुलिस भले ही इन पर रोक लगाने के लिए डंका पीट रही हो लेकिन इन बवालियों व अपराधियों के आगे नाकाम साबित हो रही है। इसका ताजा उदाहरण कासगंज में देखने को मिला बवाली बवाल काटते रहे और पुलिस नतमस्तक बनी रही, लिहाजा सेना को ही मोर्चा संभालना पड़ा।
दंगा फैलाने और हिंसा में अब तक 49 गिरफ्तार
उत्तर प्रदेश के कासगंज जिला में हुई हिंसा के मामले पुलिस ने अब तक 49 दंगाइयों को गिरफ्तार करने का दावा किया है। इनमें दंगा फैलाने के मामले में 39 और हत्या के केस में 10 गिरफ्तारियां बताई जा रही हैं। हिंसा को देखते हुए कासगंज जिले की सभी सीमाएं सील कर दी गईं हैं। कासगंज जिले में गाड़ियों की आवाजाही पर रोक लगाने के साथ ही धारा 144 लगाई गई है।