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चित्रकूट में जल माफिया का बोलबाला, पानी की किल्लत से जूझ रहे ग्रामीण

Water mafia's patriotism villagers struggling with water crisis

Water mafia's patriotism villagers struggling with water crisis

चित्रकूट में जल संकट से ग्रामीण परेशान है और सरकार के अधिकारी और जन प्रतिनिधि उनकी समस्याओ को हल करने की बजाये, उनके हालातों का फायदा उठाने में लगे हैं. खुद अधिकारी ही जल माफिया बन बैठे है. सरकारी कागजों में टैंकरों द्वारा जलापूर्ति दिखाया जा रहा है, पर असलियत इससे इतर हैं. 

कागजों में दिखाए जा रहे पानी के टैंकर पर ग्रामीणों तक नहीं पहुँच रहा पानी: 

यह कहावत तो आपने सुनी ही होगी.. ‘बिन पानी सब सून’ यह कहावत बुन्देलखंड के लिए एक दम सटीक बैठती है. बल्कि बिन पानी नहीं है कोई जीवन, यह कहना ज्यादा ठीक लगता है. क्योंकि बुन्देलखंड की स्थिति कुछ ऐसी ही है. बुन्देलखंड में जल संकट की समस्या बढ़ती ही जा रही है. सबसे ज्यादा समस्या तो उत्तर प्रदेश की सीमा पर सटे चित्रकूट की है.

उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले में पेयजल संकट बढ़ता जा रहा है. इसका सबसे ज्यादा प्रभाव ग्रामीण इलाकों में पड़ रहा है. पठारी भागों में रह रहे लोगों को सबसे ज्यादा मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. पानी की किल्लत का असर ग्रामीण जन जीवन पर इस कदर पड़ रहा है की उन्हें घरेलु काम काम तो दूर पीने के पानी को लेकर भी समस्याएं हो रही हैं.

सरकार के बड़े बड़े दावों और परियोजनाएं बेकार पड़ती दिख रही है. अभी कुछ दिन पहले ही सीएम योगी आदित्यनाथ चित्रकूट के दौरे पर थे. इस दौरान उन्होंने चित्रकूट और आसपास के क्षेत्रों में बढ़ते जल संकट को लेकर अधिकारियों को फटकार भी लगाई थी. पर उनकी हिदायत के बाद भी क्षेत्र में लोग जल संकट से बावस्ता हो रहे हैं.

सरकार की तरफ से ग्रामीणों कि जलापूर्ति के लिए टैंकर की व्यवस्था की गयी है. पर उन तक ये टैंक पहुँच ही नहीं पा रहे. अधिकारियों के कागजों में क्षेत्रवासियों को टैंकर से पानी पहुँचाया जा रहा है पर असलियत इससे कोसों दूर है.

प्राइवेट ठेकेदार बेच रहे महंगा पानी:

खुद ग्राम प्रधान और सचिव ही जल माफिया बन गये हैं. पानी के टैंकर लोगों तक पहुँच नहीं रहे और सरकारी दस्तावेजों में पानी की समस्या दूर करने के दावे किये जा रहे हैं.

इस जल संकट का फायदा उठा रहे हैं प्राइवेट ठेकेदार. ये प्राइवेट ठेकेदार धड़ल्ले से ऊँचे दामों में पानी बेच रहे हैं. सरकार की ओर से जलापूर्ति के लिए कोई सहायता ना मिलने से बल्कि जनप्रतिनिधि और प्रशासन की अनदेखी से आहत ग्रामीणों को महंगे दामों में भी जल खरीदना पड़ रहा हैं.

इतना ही नहीं ग्रामीणों को मीलों दूर जाकर पानी लाना पड़ता हैं. इसके लिए वे बैलगाड़ी, रिक्सा, साइकिल का उपयोग कर रहे हैं जिससे ग्रामीणों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.

मानिकपुर तहसील के अमचुरनेरुआ, किहुनिया, मनगवां, इटवां ग्राम पंचायतों में पानी की सबसे ज्यादा किल्लत है. वहीं पाठा के छेरिहाखुर्, शेखापुर , छिवलहा, चुरेह कशेरुआ जैसे गांव जल संकट से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं.

दिन पर दिन सुखा पड़ता जा रहा है. और जैसे जैसे गर्मी बढ़ रही है, सूबे का हाल और बद्दतर होता जा रहा है. धरती रेगिस्तान की तरह आग उगल रही है, वहीं आसमान भी कम सितम नही ढाह रहा. इन सब के बीच प्राकृतिक मूल्यों के धनी गाँव अब गरीब से जान पड़ते है.

इस तरह के हालातों में वहां के लोग कैसे बसर कर रहे है, इसकी तो बस हम कल्पना ही कर सकते है. ऐसी जल समस्या क्षेत्र के लोगों के लिए कई और समस्याएं पैदा कर रही है. जहाँ एक ओर जल संकट का सीधा असर लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है, वहीं दूसरी ओर लोग अपना घर छोड़ क्षेत्र से पलायन करने को भी मजबूर है.

बुन्देलखंड जलसंकट: लोग गड्ढों में भरे गंदे पानी का कर रहे इस्तेमाल

 

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