मोक्ष दायिनी गंगा को भारत में नदी नहीं बल्कि माँ का दर्जा प्राप्त है. गंगा की सफाई को लेकर सालों से प्रयास जारी है. गंगा सफाई अभियान से लेकर नमामि गंगे तक गंगा की सफाई पर सैकड़ों करोड़ खर्च हुए मगर इसे अविरल बनाने का सपना साकार नहीं हो सका. केंद्रीय प्रदुषण नियंत्रण बोर्ड की हाल ही में आई रिपोर्ट की माने तो यूपी, बिहार और बंगाल के ज़्यादातर इलाकों में गंगा का पानी आचमन करने लायक तक नहीं है.

यूपी में केवल दो जगहों का गंगाजल पीने लायक:

सीपीसीबी की रिपोर्ट की माने तो प्रदेश में केवल बिजनौर और गढ़मुक्तेश्वर में दो जगहों को छोड़कर बाकी जगहों का गंगाजल पीने योग्य नहीं है. कन्नौज में गंगाजल में ऑक्सीजन की मात्र काफी कम तो अनूपशहर में बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड निर्धारित मानक से अधिक है. अलीगढ़ के कछ्लाघाट में पीएच मान और नरैना में बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड और पीएच की मात्रा निर्धारित मानक से अधिक है.

कानपुर में कॉलिफॉर्म की मात्रा काफी अधिक है. विशेषज्ञों की माने तो इसका कारण गंगा के प्रवाह में बाधा है.

उत्तराखंड में बहती अविरल गंगा:

उत्तराखंड के हरिद्वार, ऋषिकेश, रुद्रप्रयाग, देवप्रयाग, गंगोत्री और रूड़की में गंगा अविरल बह रही है. मगर  सीपीसीबी ने यहाँ  इ को भी छानकर पिने  सलाह दी है. सीपीसीबी ने अपनी वेबसाइट पर उन जगहों का मानचित्र भी जारी किया है जहाँ गंगाजल पीने लायक है. आशचर्यजन रूप से बिहार- यूपी बॉर्डर पर छपरा-आरा रोडब्रिज के पास गंगा का जल साफ़ पाया गया है.

इन मापदंडों के आधार पर आई रिपोर्ट:

ऑक्सीजन की मात्रा पीने के पानी में 6 मिलीग्राम और नहाने के पानी में 5 मिलीग्राम से ज्यादा जबकि बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड पीने के पानी में प्रति लीटर 2 मिलीग्राम से कम और नाहाने के पानी में 3 मिलीग्राम से कम होना चाहिए. पीएच लेवल 6.5 से 8.5 के बीच होना चाहिए. अलग-अलग चरणों में गंगाजल को परखकर यह रिपोर्ट तैयार की गई है.

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