[nextpage title=”खुलेआम कानून की धज्जिया उड़ाते हुए ई-रिक्शा” ]

राष्ट्रीय बाल अधिकार सुरक्षा आयोग 12 जून को बाल श्रम विरोधी विश्व दिवस के रूप में मना रहा है। बाल मजदूरी को रोकने के लिए लखनऊ की ट्रेफिक पुलिस कितनी गम्‍भीर है इसका अन्‍दाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि शहर में छोटे छोटे बच्‍चे खुलेआम ई-रिक्‍शा चलाते हुए देखे जा सकते है। बाल मजदूरी के अनुसार छोटे छोटे बच्‍चों से श्रम का कोई भी काम करवाना गैरकानूूनी है।

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[nextpage title=”खुलेआम कानून की धज्जिया उड़ाते हुए ई-रिक्शा 2″ ]

इन बच्‍चों से इस तरह का काम कौन करवा रहा है, ये प्रश्‍न भी काफी महत्‍वपूर्ण है लेेकिन सबसे चिंताजनक बात ये है पुलिस प्रशासन के होते हुए ये बच्‍चे ना केवल रिक्‍शा चला रहे है बल्कि लोग भी इन रिक्‍शाओं में बैठकर बाल मजदूरी को अपनी स्‍वीकृृति दे रहे हैं।

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[nextpage title=”खुलेआम कानून की धज्जिया उड़ाते हुए ई-रिक्शा 3″ ]

बाल मजदूरी रोकने के तमाम दावों के बावजूद अखिलेश सरकार के राज्‍य में आज भी छोटेे-छोटे बच्‍चे ई-रिक्‍शा चलाते हुए देखे जा रहे है जो कि ना केवल सरकार के लिए बल्कि एक सभ्‍य समाज के लिए भी बेहद शर्मनाक बात है। बाल-श्रम कानून के अनुसार बच्‍चों से मजदूूरी करवाना गैरकानूनी है। इस कानून के बावजूद पुलिस के सामनेे बच्‍चे गैैरकानूूनी काम करते हुए देखे जा रहेे है।

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[nextpage title=”खुलेआम कानून की धज्जिया उड़ाते हुए ई-रिक्शा 4″ ]

भारत में सरकारी आंकड़ो के अनुसार, लगभग 2 करोड़ और अंतराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार 5 करोड़ बच्चे बाल मजदूरी करते हैं। ग्रामीण और असंगठित क्षेत्रों में 80 फीसदी बच्चे काम करते हैं। बाल मजदूरों से 18 घंटे से अधिक का काम लिया जाता है जो की कानूनन अपराध है।

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भारत सरकार की 2001 की जनगणना के अनुसार एक करोड़ 27 लाख बच्चे बाल श्रम में लगे हुए हैं और यह संख्या भारत के कुल श्रमिकों की संख्या के 3.6 प्रतिशत के बराबर है. समय से पहले श्रम के कार्य में लग जाने से वे उस शिक्षा और प्रशिक्षण से वंचित रह जाते हैं, जो उनके परिवारों और समुदायों को गरीबी के चक्र से बाहर निकालने में मददगार हो सकते हैं।

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