बिल्डरों, सरकार और अधिकारियों की लूट का एक और कारनामा सामने आया है. ये घोटाला करीब ढाई हज़ार करोड़ करोड़ का है. घोटाला मायावती के शासनकाल में हुआ जिन्होंने ज़िंदगी भर गरीब और समाज के दबे कुचले लोगों के नाम पर राजनीति की. उन्हीं की ज़मीन उन्हीं के शासनकाल के अधिकार और बिल्डर्स मिलकर डकार गए. दरअसल यमुना प्राधिकरण क्षेत्र में किसानों की आड़ लेते हुए आबादी के नाम पर जमीन छोड़ने का ये ढाई हज़ार करोड़ का बड़ा घोटाला है.

बसपा के शासनकाल का घोटाला उजागर: 

https://youtu.be/hdnzyYqHKaY

  • बसपा शासनकाल में ये घोटाला 2008-2011 के बीच हुआ.
  • सत्ता से जुड़े लोगों और अधिकारियों के करीबियों ने अलग अलग गांवों में अधिग्रहण की पहली कार्रवाई के बाद किसानों से करीब 500 हेक्टेयर कृषि भूमि खरीदी.
  • इसके बाद खाली जमीन पर घर दिखाकर भूमि को अधिग्रहण की कार्रवाई करके गैर कानूनी तरीके से छुड़ा लिया गया.
  • मौजूदा समय में बाजार में जमीन की कीमत करीब ढाई हजार करोड़ आंकी जा रही है.

कृषि भूमि पर बस्ती दिखाकर किया गया खेल: 

  • इसमें किसानों को मुआवज़ा भी नहीं दिया गया.
  • यहाँ तक कि किसान आंदोलन का भी नहीं हुआ असर.
  • तत्कालीन सरकार में अधिकारी करोड़ रुपये डकार गए
  • इस मामले में चेयरमैन प्रभात कुमार ने जांच के आदेश दिए हैं.
  • इस महा घोटाले पर प्राधिकरण चेयरमैन और मेरठ मंडलायुक्त प्रभात कुमार ने जांच के आदेश दिए हैं.
  • पूरे खेल के खुलासे के लिए किसानों ने जमीन को अधिग्रहण से मुक्त कराने के लिए आंदोलन भी किए.
  • जेल भी गए लेकिन उनकी कौन सुने.
  • जब बिल्डर और बेताल टाइप के अधिकारी कुर्सी से चिपके बैठे हों.
  • इसके बाद प्राधिकरण ने इस आंदोलन को आधार बनाकर सरकार को रिपोर्ट भेजी.
  • सरकार ने प्राधिकरण को किसानों के हित में कदम उठाने के निर्देश दिए.
  • इसी आदेश को आधार बनाकर आबादी की जमीन छोड़ने का गोरखधंधा शुरू हुआ.

कैसे शुरू हुआ घोटाला :

  • अधिग्रहण की पहली कार्रवाई में किसानों से 500 हेक्टेयर कृषि भूमि खरीदी.
  • धारा-6 की कार्रवाई में एडीएम की रिपोर्ट में ज़मीन खाली दिखाई गई.
  • 15 दिन बाद की धारा-9 की कार्रवाई में ज़मीन पर फर्जी मकान दिखा दिए.
  • जबकि मौके पर कोई आबादी थी ही नहीं.
  • सैटेलाइट इमेजरी रिपोर्ट में भी निर्माण नज़र नहीं आया.

यमुना विकास प्राधिकरण में घोटाला:

  • साल 2008 से 2011 तक जो अधिग्रहण प्राधिकरण ने किया था वो पूरा का पूरा कृषि भूमि पर डाला.
  • प्राधिकरण की जद में आने वाले करीब 96 गांवों की ज़मीन आबादी के नाम पर छोड़ दी.
  • ये ज़मीन दरअसल मायावती के शासनकाल के प्रभावशाली अफसरों, नेताओं और उनके करीबियों के लिए छोड़ी गई थी.
  • उस दौर युमना विकास प्राधिकरण के चेयरमैन मोहिंदर सिंह थे.
  • यमुना अथॉरिटी के सीईओ पीसी गुप्ता थे.
  • अब प्राधिकरण के चेयरमैन ने जांच के आदेश दिए हैं.
  • सालों पर इस करोड़ों के हेऱ फेर घोटाले परते खुलनी शुरू हो गईं हैं.
  • प्राधिग्रहण के इस पूरे खेल में नेता और अफसरों की मिलीभगत की बात सामने आने के बाद सियासत तय है.
  • लेकिन उनका क्या जिन्होंने करीब तीन हज़ार करोड़ की ज़मीन खा ली और डकार भी नहीं ली.
UTTAR PRADESH NEWS की अन्य न्यूज पढऩे के लिए Facebook और Twitter पर फॉलो करें