गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में हुई बच्चों की मौतों के लिए सरकार ने ऑक्सीजन की कमी को कोई कारण नहीं माना है. हालांकि, योगी सरकार ने इस जघन्य कांड में मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्य आरके मिश्र को लापरवाही के लिए निलंबित कर दिया. वहीं, उस भयानक रात में बच्चों की जिंदगी को बचाने के लिए जद्दोजहद कर रहे डॉ. कफील को प्राइवेट प्रैक्टिस करने के लिए सस्पेंड कर दिया. मगर ‘uttarpradesh.org’ की पड़ताल में ये बात सामने आई है कि डॉ. कफील ने बच्चों की जिंदगी बचाने के लिए काफी कोशिश की थी. वहीं, 12 अगस्त की सुबह गोरखपुर के एसपी ने व दोपहर में जिलाधिकारी ने जो रिपोर्ट बनाई है उसमें बच्चों की मौत के लिए ऑक्सीजन की कमी को कारण बताया गया है.
डॉ. कफील ने उस रात एसएसबी से मांगी थी मदद(yogi government):
- सीमा सुरक्षा बल (एसएसबी) की ओर से जारी की गई एक प्रेस रिलीज में बताया गया है कि 11 अगस्त की रात को जब बच्चे ऑक्सीजन की कमी से तड़प रहे थे तब डॉ. कफील ने एसएसबी से मदद की अपील की थी.
- मामले की गंभीरता को देखते हुए एसएसबी के डीआईजी गोरखपुर ने एक ट्रक के जरिए शहर के सभी अस्पतालों से ऑक्सीजन सिलेंडर को एकत्र कराने का प्रयास किया था.
- प्रेस रिलीज के मुताबिक, इस बीच डॉ. कफील शहर के सभी अस्पतालों से बात करते रहे और ऑक्सीजन सिलेंडर मुहैया कराने की कोशिश में जुटे रहे.
- उस दौरान डीआईजी एसएसबी डॉ. भास्कर रे ने अपने जवानों को निर्देश देते हुए कहा कि बच्चों की जिंदगी को बचाने के लिए हरसंभव प्रयास किया जाए.
- डॉ. भास्कर रे के मुताबिक, इस बीच एसएसबी पैरामेडिकल स्टाफ को मदद करता देख उस रात वार्ड में बच्चों के अभिभावकों को भी काफी शांति मिली. उनके अंदर एक विश्वास की भावना जाग गई.
- डॉ. कफील को निलंबित कर दिया गया था, बता दें कि यूपी में सरकारी अस्पतालों में तैनात ज्यादातर डॉक्टर्स प्राइवेट प्रैक्टिस करते रहते हैं.
एसपी-डीएम की रिपोर्ट:- मौत की वजह ऑक्सीजन की कमी(yogi government):
- 11 अगस्त की रात मामले ने तूल पकड़ लिया तब अगले रोज सुबह छह बजे गोरखपुर के एसपी ने पूरे मामले पर अपनी एक रिपोर्ट बनाई थी.
- ‘uttarpradesh.org’ को सूत्रों ने बताया कि उक्त रिपोर्ट में एसपी ने बताया था कि उस रात वार्ड में भर्ती मरीजों की मौत सही समय पर ऑक्सीजन न मिल पाने के कारण हुई थी.
- यही नहीं 12 अगस्त को ही दोपहर 12 बजे के करीब गोरखपुर के जिलाधिकारी ने इस बारे में अपनी रिपोर्ट तैयार की तो उसमें बताया गया है कि ऑक्सीजन की कमी से ही बच्चों की मौतें हुई हैं.
- हालांकि, इन दोनों रिपोर्ट्स को दरकिनार करते हुए राज्य सरकार ने आधिकारिक बयान जारी करते हुए बताया कि ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत नहीं हुई है. हालांकि, उन्होंने ऑक्सीजन की सप्लाई का करीब दो घंटे तक ठप्प होना स्वीकार किया था.
- ऐसे में यह सवाल पूछना लाजिमी है कि आखिर सरकार ने एसपी और डीएम की ओर से जारी रिपोर्ट का कोई संज्ञान न लेकर कहीं जनता को इस पूरे मसले पर भरमाने की कोशिश तो नहीं की है?
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डॉ. कफील पर बलात्कार का आरोप कितना सही(yogi government):
- बीआरडी मेडिकल कॉलेज में बच्चों की जान बचाने के लिए पुरजोर कोशिश करने वाले डॉ. कफील को लेकर सोशल मीडिया पर एक एफआईआर की कॉपी वायरल हो चुकी है.
- उस एफआईआर की कॉपी में लिखा है कि डॉ. कफील पर वर्ष 2015 में बलात्कार का एक आरोप भी लगा था.
- मगर ‘uttarpradesh.org’ ने इस सच को भी खंगालने की कोशिश की तो पता चला कि उस आरोप में पुलिस ने अपनी जांच में पाया था कि वह जमीन के एक मामले का बदला लेने के लिए झूठा मुकदमा दर्ज किया गया था.
- यानी डॉ. कफील को उस आरोप से मुक्ति मिल चुकी है. इसके बावजूद सोशल मीडिया पर डॉ. कफील की ओर से उस रात बच्चों को बचाने के लिए किए गए प्रयास को नजरअंदाज कर दिया गया. लोगों ने एफआईआर की कॉपी को ही सच माना. पुलिस की अंतिम रिपोर्ट का कोई जिक्र नहीं किया.
एडहॉक पर तैनात डॉ. कफील का सच:
- यूं तो इस पूरे मसले पर डॉ. कफील को लेकर सोशल मीडिया में कई तरह के तथ्यों का जिक्र किया जा रहा है. मगर सच तो यह है कि डॉ. कफील बीआरडी मेडिकल कॉलेज में एडहॉक के तहत नौकरी कर रहे थे.
- सच्चाई को छुपाने के लिए बीआरडी मेडिकल कॉलेज की आधिकारिक वेबसाइट को बंद कर दिया गया है. मगर इस जघन्य कांड के पहले वेबसाइट ठीक तरह से चल रही थी.
- वहीं, डॉ. कफील से नौकरी के संदर्भ में हुए अनुबंध के तहत उन्हें इस बात की पूरी आजादी थी कि वे अस्पताल के अलावा अपनी प्राइवेट प्रैक्टिस को जारी रख सकते थे.
- इन सभी तथयों के बावजूद डॉ. कफील को योगी सरकार ने उनकी सकारात्मक कोशिशों को दरकिनार करते हुए सस्पेंड कर दिया.
- यही नहीं अस्पताल के प्रिंसिपल और चिकित्सक पर गाज गिराने के साथ ही योगी सरकार ने अपने मंत्रियों को इस पूरे प्रकरण में बचाने का प्रयास किया है.
- यही नहीं बीआरडी की आधिकारिक वेबसाइट पर फैकल्टी का जो जिक्र किया गया है उसमें भी डॉ. कफील के बारे में कोई जानकारी नहीं है.
रिपोर्ट:
- डीएम ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि ऑक्सीजन आपूर्तिकर्ता फर्म पुष्पा सेल्स को ऑक्सीजन की सप्लाई को भुगतान के बाधित नहीं करना चाहिए था.
- ऑक्सीजन एक जीवन रक्षक गैस है. ऐसे में भुगतान के लिए ऑक्सीजन सप्लायर को यह कदम नहीं उठाना चाहिए था.
- वहीं, डीएम की जांच में पाया गया है कि 11 अगस्त की रात एनेस्थीसिया विभाग के एचओडी डॉ. सतीश बिना लिखित सूचना के अनुपस्थित रहे थे.
- डॉ. सतीश ही ऑक्सीजन सप्लाई के प्रभारी भी हैं. ऐसे में उन्हें प्रथम दृष्टया जांच में दोषी पाया जाता है.
- वहीं, डीएम की रिपोर्ट में बताया गया है कि ऑक्सीजन सिलेंडर का स्टॉक बुक एवं लॉगबुक मैनटेन करने का जिम्मा डॉ. सतीश व चीफ फार्मासिस्ट गजानन जायसवाल पर था.
- मगर इन दोनों ने ही स्टॉक बुक व लॉगबुक दोनों को ठीक तरह से मैनटेन नहीं किया. उसमें कई जगहों पर ओवरराइटिंग भी पाई गई है.
- इससे स्पष्ट होता है कि ऑक्सीजन की सप्लाई को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा था. रिपोर्ट में इस बारे में प्राचार्य को लापरवाह बताया गया है.
- वहीं, डीएम की रिपोर्ट में बताया गया है कि 10 अगस्त को प्राचार्य डॉ. राजीव मिश्र छुट्टी पर थे. वहीं, 11 को बिना सूचना दिए डॉ. सतीश भी नदारद हो गए. ऐसे में समय रहते निदान न होने से मामला गंभीर हो गया था.
- डीएम ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि लिक्विड ऑक्सीजन आपूर्तिकर्ता द्वारा बार-बार भुगतान मांगने पर भी कोई कदम न उठाए जाने के लिए लेखा अनुभाग के जूनियर व वरिष्ठ बाबुओं को भी दोषी बताया गया है.