उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में शुक्रवार 10 नवम्बर से ‘लिटरेरी फेस्टिवल’ की शुरुआत हो चुकी है, उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों के पूर्व में राज्यपाल रह चुके अजीज कुरैशी ने फेस्टिवल का शुभारम्भ किया था। गौरतलब है कि, यह लिटरेरी फेस्टिवल तीन दिनों के लिए राजधानी लखनऊ के गोमतीनगर स्थित ‘शीरोज’ में आयोजित किया गया है, जिसका समापन 12 नवम्बर को किया जायेगा। फेस्टिवल के पहले दिन कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूर्व राज्यपाल अजीज कुरैशी थे, जिनसे ‘लखनऊ लिटरेरी फेस्टिवल’ के डिजिटल पार्टनर UttarPradesh.Org ने मुख्य अतिथि से बात की।
उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्यपाल अजीज कुरैशी से UttarPradesh.Org का दो टूक:
सवाल: लिटरेरी फेस्टिवल का उद्घाटन किया आपने, साहित्य से जुड़े आयोजनों में युवाओं की भागीदारी को लेकर आपके क्या विचार हैं?
- जवाब: साहित्य रूह है, आत्मा है, आत्मा जितनी अच्छी होगी यूथ भी उतना अच्छा होगा। आजकल के युवाओं ने साहित्य को पढ़ना छोड़ दिया है। ई-मेल आदि ने युवाओं को साहित्य से दूर कर दिया है। युवाओं को अधिक से अधिक साहित्य पढ़ना चाहिए। साहित्य हमारी जिंदगी हैं, साहित्य भविष्य है हमारा, साहित्य हमारा सब कुछ है।
सवाल: बतौर राज्यपाल आपको काम करने में किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा?
- जवाब: नहीं ऐसा तो कभी नहीं लगा, अगर कभी कुछ ऐसा हुआ भी तो चुनौतियों को हैंडल किया।
सवाल: राष्ट्रगान को लेकर चल रही बहस को आप किस रूप में देखते हैं?
- जवाब: राष्ट्रगान पर जो लोग बहस करते हैं, उनके पास अक्ल नहीं है, राष्ट्रगान हमारा गान है, हम सबका गान है। हमें तो कोई आपत्ति नहीं है, सबको इसे गाना चाहिए।
सवाल: दो-तीन दशक पूर्व की राजनीति और अब की राजनीति में कितना बदलाव आया है?
- जवाब: पहले की राजनीती में सेवा थी, त्याग था, लोगों की खिदमत थी, जिसके लिए सबको बलिदान करना था। आज राजनीति व्यक्तिगत हो गयी है, अपना लाभ हो, अपनी कमाई हो, अपने को सत्ता मिले, पहली की राजनीति का केंद्र देश था, आज अपना घर है और परिवार है।
सवाल: राजनीति में आने वाले युवाओं को क्या संदेश देना चाहेंगे आप?
- जवाब: देश के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करें, सांप्रदायिक एकता के लिए, सद्भाव के लिए और साम्प्रदायिकता से लड़ने के लिए। समाजवाद का रास्ता अपनाने के लिए, एक नए सेहतमंद और खूबसूरत समाज और एक प्रगतिशील सांप्रदायिक राष्ट्र का निर्माण करें।