Uttar Pradesh News, UP News ,Hindi News Portal ,यूपी की ताजा खबरें
India

कृषि, कचरा और उद्योग बेंगलुरु में वायु प्रदूषण के छुपे हुये कारण है

 

कपिल काजल

बेंगलुरु, कर्नाटक:

अक्सर यहीं मान लिया जाता है कि वायु प्रदूषण के लिए बहुत हद तक यातायात जिम्मेदार है। लेकिन वायु प्रदूषण की दूसरी वजह भी बहुत ज्यादा है। जिस ओर प्राय ध्यान नहीं दिया जाता। इस वजह से यातायात को प्रदूषण के खलनायक के तौर पर प्रस्तुत किया जाता है। क्योंकि हवा को प्रदूषित करने में वाहनों से निकलने वाला धुआं बड़ी वजह माना जा रहा है। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि वायु प्रदूषण के लिए दूसरे क्षेत्र भी काफी हद तक जिम्मेदार है। इसमें मुख्यत: घरों से निकलने वाला कचरा, बिजली की खपत वाले क्षेत्र, उद्योग से निकलने वाले रयासनव गैस, कृषि और मवेशी भी शहर के वायु प्रदूषण के काफी वृद्धि करते हैं।

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (आईआईएससी) के एक अध्ययन के अनुसार, वायुमंडल में यातायात 43.48% कार्बन डाइऑक्साइड बढ़ाने के लिये जिम्मेदार है। घरेलू क्षेत्र 21.59% बिजली की खपत क्षेत्र 15.46% है, जबकि उद्योग 12.31% योगदान करते हैं, कचरे से 5.73% कृषि और पशुधन 1.31% योगदान वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है।

सेंटर फॉर इकोलॉजिकलसाइंसेज (सीईएस), आईआईएससी के एक अध्ययन के अनुसार वायुमंडल में जितनी कुल कार्बन डाइऑक्साइड का 3085 Gg (1Gg= 10 लाख किलोग्राम) में उर्जा क्षेत्र , घरेलू क्षेत्र 4273.81 Gg परिवहन क्षेत्र 8606 Gg औद्योगिक से 2437 Gg, कृषि क्षेत्र 118.96 Gg मवेशियों से 139.66 Ggकचरे से 1134.52 Gg कार्बन डाइऑक्साइड पैदा होती है।

बिजली की खपत

सीआईएस, आईआईएससी के अध्ययन के अनुसार, ऊर्जा क्षेत्र में सबसे ज़्यादा प्रदूषण बिजली की खपत से होता है।

बिजली की जितनी ज्यादा खपत होगी, प्रदूषण भी उतना ही ज्यादा बढ़ेगा।

घरेलु सेक्टर में खाना पकाने के लिए ईंधन की खपत और उद्योगों में अलग अलग मशीनों को चलाने के लिए जो ईंधन प्रयोग होता है, उससे पैदा हुई ग्रीन हाउस गैस वायुमंडल में जाती है। इस तरह के उद्योग में लोहे और स्टील फैक्टरी, सीमेंद,खाद और कैमिकल बनाने की फैक्टरी जब चलती है तो भारी मात्रा में ग्रीन हाउस गैस वातावरण में छोड़ती है।

सीईएस, आईआईएससी के एक प्रोफेसर डॉ टी वी रामचंद्र का कहना है कि बिजली की खपत में घरों अौरफैक्टरियों के भवन के डिजाइन भी बड़ी भूमिका है। उन्होंने कहा कि इन दिनों इमारतों में ग्लास का इस्तेमाल ज्यादा हो रहा है, लेकिन इस तरह के भवन में बिजली की खपत सामान्य इमारतों की तुलना में 10 गुना अधिक होती है।

सामान्य इमारत में बिजली की खपत 750 से 1,450 यूनिट प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष तक होती है। दूसरी आेर यदि इमारत में सामने की तरफ कांच लगाया है तो बिजली की खपत बढ़ कर 14,000 से 16,000 यूनिट प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष तक हो जाती है। उन्होंने बताया कि अब बिजली की जितनी खपत होगी, उतनी ही अधिक कार्बन पैदा होगा।

इमारतों में शीशे का प्रयोग इसलिए भी बढ़ रहा है, क्योंकि यह निर्माण करने वाले ठेकेदार को सस्ता पड़ता है, इसके साथ कंकरीट की दीवार की तुलना में शीशे की दीवार से इमारत में ज्यादा जगह मिल जाती है। अब एक ओर तो ठेकेदार शीशे के तौर पर सस्ती निर्माण सामग्री प्रयोग कर रहे हैं। दूसरी ओर ओर वह ज्यादा जगह उपलब्ध कराने की एवज में अतिरिक्त पैसा भी ले रहे हैं।

कृषि से पैदा होती है मीथेन गैस

कृषि क्षेत्र से पैदा होने वाली कार्बन डाइऑक्साइड गैस वायुमंडल में छोड़ने में बेंगलुरु भारत का दूसरा प्रदूषित शहर है। सीइएस के अध्ययन से पता चला कि धान की खेती से मीथेन गैस पैदा होती है। भूमि की उर्वरा बनाये रखने के लिए जिस तरह के रसायनिक खादों का प्रयोग होता है इससे नाइट्रस ऑक्साइड पैदा होती है। इस तरह से कृषि क्षेत्र से ग्रीनहाउस गैस छोड़ने के लिए जिम्मेदार हैं।

कृषि संबंधित गतिविधियों से होने वाले प्रदूषण को दर्शाता चार्ट CO2 (चार्ट- IISc)

डॉ रामचंद्र ने बताया कि कृषि में जैविक पदार्थों की वजह से कार्बन की मात्रा बढ़ती है। आमतौर पर किसान फसल की कटाई के बाद जो ठंडलवपुराल आदि बचता है उसमें आग लगा देते हैं। इससे प्रदूषक फैलाने वाली गैस पैदा होती है। उन्होंने बताया कि जब धान या गन्ने के खेत में पानी भर देते हैं तो इससे मीथेन गैस पैदा होती है। जो ग्रीन हाउस पैदा करती है।

इस तरह से पशु चारे के तौर पर जैविक पदार्थों को खाते हैं। जब वह इसे पचाते हैं तो इस प्रक्रिया में भी मीथेन गैस बनती है। डा. रामचंद्र ने कहते है ” अब जब पशु गोबर करते हैं, इस गोबर ने किसान खाद तैयार करते हैं तो दोबारा से मीथेन बनती है।

पशुधन क्षेत्र से CO2 तुलनात्मक (चार्ट- IISc)

जितनी अधिक खपत होगी, कचरा भी उतना ही ज्यादा पैदा होगा

सबसे ज्यादा कचरा निकालने में बेंगलुरु दिल्ली और मुंबई के बाद देश में तीसरे स्थान पर है। नगरपालिका के ठोस कचरे, घरों और औद्योगिक इकाईयों से निकलने वाले गंदे पानी में मीथेन और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड निकलने वाली प्रमुख गैसें हैं।

CO2 को दर्शाने वाला चार्ट (चार्ट- IISc)

घरेलू और उद्योग से ठोस और तरल कचरा निकलता है। ठोस कचरे में 70-80%कार्बनिक तत्व होते हैं। जब इसका सही तरह से निपटरा नहीं होता तो इससेतो मीथेन गैस बनती है।

डॉ रामचंद्र ने बताया कि लाोग घरों से निकले वाले गंदे पानी को नदियों या तालाब आदि में छोड़ देते हैं। क्योंकि इस गंदे पानी में आक्सीजन नहीं होती। इस पानी से भी मिथेन और नाइट्रोजनडाइआक्साइड गैस पैदा होती है।

पर्यावरणविद संदीप अनिरुद्धन ने कहा कि बढ़ता औद्योगीकरण प्रदूषण की एक बड़ी वजह है। लेकिन इसके पीछे मुख्य वजह यह है कि हम ज्यादा उपभोक्तावादी बन रहे हैं। हमारी जीवन शैली ऐसी हो गयी कि हमें ज्यादा से ज्यादा चीजेचाहिए। अब जब चीजों की मांग होगी तो उद्योग इसे तैयार भी करेंगे। क्योंकि बाजार में मांग बढ़ रही है, इसलिए उद्योग इस मांग को पूरा करने के लिए उत्पादन बढ़ाते हैं। उत्पादन बढ़ाने के लिए वह ज्यादा इंधन का इस्तेमाल करते हैं। जाहिर है इससे प्रदूषण बढ़ता है। इसलिए समस्या की जड़ है बढ़ता उद्योगिकरण, दूसरा उपभोक्तावाद तीसरा बाजार की अर्थव्यवस्था। उन्होंने कहा कि मार्केट में मांग बढ़ रही है, इसलिए बाजार में अधिक से अधिक उत्पाद चाहिए। इस मांग को पूरा करने के लिए उत्पादन बढ़ाना ही पड़ेगा।

उन्होंने कहा कि अब वक्त आ गया है कि हमें दूसरे इससे बचने के लिए दूसरे रास्ते तलाशने होंगे। लेकिन दिक्कत यह है कि इसका समाधन प्राकृतिक खेती में हैं। जिसमें रसायनिक खादों का इस्तेमाल नहीं हो रहा है। लेकिन इसमें कंपनियों को प्राकृतिक खेती लाभ का सौदा नहीं लगती। इसलिए वह प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की दिशा में कुछ नहीं कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि हमारा स्वास्थय, “अर्थव्यवस्था और प्रदूषण हर चीज आपस में जुड़ी हुई है। इसलिए इस समस्या का समाधान भी हमें ही तलाशनाहोगा।

कर्नाटक राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (केएसपीसीबी) के मुख्य वैज्ञानिक अधिकारी डॉ एचलोकेश्वरी ने कहा कि बोर्ड ने हर क्षेत्र में प्रदूषण कम करने का 44-सूत्रीय कार्य योजना तैयार की है।

“हम उद्योग से होने वाले प्रदूषण की नियमित निगरानी कर रहे हैं, यदि उद्योग तय मानकों का उल्लंघन कर रहे हैं, तो हम उनके खिलाफ कार्रवाई करते हैं । उन्होंने कहा कि प्रदूषण मानकों की पालना न करने पर हमने ग्रेफाइट इंडिया को बंद कर दिया है।

(लेखक बेंगलुरु के स्वतंत्र पत्रकार है। वह 101 रिपोर्टर्स , जो कि अखिल भारतीय ग्रासरुट रिपोर्टर्स का नेटवर्क है के सदस्य हैं।)

Related posts

नोटबंदी का उद्देश्य अब कैशलेस ट्रांजेक्शन- वित्त मंत्री

Divyang Dixit
8 years ago

भाजपा राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक के लिए रवाना हुए पीएम, जाने क्या है पीएम का मिनट-टू-मि‍नट प्रोग्राम!

Rupesh Rawat
8 years ago

ब्रिटेन में ओवल स्टेडियम के बाहर माल्या को देख लगे ‘चोर-चोर’ के नारे!

Vasundhra
7 years ago
Exit mobile version