Uttar Pradesh News, UP News ,Hindi News Portal ,यूपी की ताजा खबरें
India

गुपचुप तरीके से हमारे लिए दूसरा बड़ा खतरा बन रहा है बायोएरोसोल , इसके बार में ज्यादा बात भी नहीं हो रही है

 

कपिल काजल द्वारा

बेंगलुरु, कर्नाटक:

अभी तक हम प्रदूषण के लिए जहरीली गैस, धूल कण और कचरे आदि को जलाने से निकलने वाले धुएं को जिम्मेदार ठहरा रहे थे। ज्यादा तरह अध्ययन भी इसी पर हो रहा है। लेकिन वायुमंडल मे एक दूसरा प्रदूषण भी तेजी से बढ़ रहा है। इसे हम बायोएरोसोल (यह फफूंद, जीवाणु, पराग कण आदि के बहुत ही छोटे ठोस कण होते हैं जो हवा में उतरी स्तर पर बुलबुले की शक्ल में

तैरते रहते हैं। जब वायु मंडल में इनकी मात्रा बढ़ जाती है तो यह धुंध की तरह नजर आते हैं। ) कहते हैं। दिक्कत यह है कि इस पर ज्यादा चर्चा भी नहीं हो रही है। लेकिन चर्चा न होने का मतलब यह नहीं है कि यह हमारे लिए कम नुकसानदाय है, बल्कि यह भी उतना ही खतरनाक है,जितना कि वाहनों से या उद्योगों से निकलने वाला जहरीला धुआं।

बेंगलुरु में खुले सीवेज, कचरे को डालने वाले स्थल जमीन को समतल करने के लिए इसमें भरा जाने वाला कचरा, झीलों में जमी काई और फफूंद भी वायु प्रदूषण को बढ़ाने का काम कर रही है।

बैंगलोर विश्वविद्यालय (बीयू) के पर्यावरण विज्ञान विभाग (डीईएस) के एक अध्ययन के अनुसार, जब हम खुले में कचरा डाल देते हैं तो इससे जीवाणु पनपते हैं। वह हवा में मिल जाते हैं जो एरोसोल या बायोएरोसोल को बढ़ा देते हैं।

2010 के बाद से बायोएरोसोल बढ़ रहा है। क्योंकि हवा में जीवाणु फफूंद, वायरस और पराग कण ) की मात्रा बढ़ रही है। एक अध्ययन में सामने आया है कि जीवाणु ताजे पानी के जलाशय या समुद्र की सतह, मिट्टी, कचरा, जानवरों और इंसानों से

सूक्ष्म जीवों के लिए पर्यावरणीय जलाशय, जैसे कि ताजा और समुद्री सतह के पानी, मिट्टी, पौधे,

जानवर और मानव जो वायुमंडलीय में 25% तक योगदान कर सकते हैं। इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी के एक अध्ययन में कहा बायोमेरोसोल के कण आमतौर पर 0.3 से 100 1m (1 m = 10 लाख )m) व्यास में होते हैं, लेकिन

1 से 10 माइक्रोन का आकार चिंता का विषय है क्योंकि छोटे कण, सांस के माध्यम से शरीर के अंदर जा सकते हैं। फाउंडेशन ऑफ इकोलॉजिकल सिक्योरिटी ऑफ इंडिया के गवर्निंग काउंसिल के सदस्य डॉ येलपा रेड्डी

के मुताबिक कचरे से जो दुर्गंध निकलती है, इससे बायोएरोसोल बढ़ता है।

शहरेां में कचरे के ढेर तेजी से बढ़ रहे हैं, जिससे

बायोएरोसोल की मात्रा वायुमंडल में बढ़ रही है, यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। उन्होंने कहा कि प्रशासन और शहर के लोग बायाेएरोसोल से होने वाले प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है।

हवा में बैक्टीरिया और फफूंद की मात्रा तेजी से बढ़ रही है। इसकी मात्रा यदि 10,000 कॉलोनी प्रति यूनिट क्यूबिक मीटर सामान्य मानी जाती है। लेकिन बीयू ने जो अध्ययन किया इसके अनुसार , 2010 में यह मात्रा 58,827 सीएफयू/ एम 3 था, जबकि 2017 में यह बढ़ कर 83,256 सीएफयू/ एम 3 तक पहुंच गया है।

https://www.datawrapper.de/_/HvHBN/

बायोएरोसोल बढ़ने के पीछे शहरों में कचरा प्रबंधन को लेकर ठोस योजना न होना बड़ी वजह है। घरों से कचरा सही तरह से एकत्रित नहीं किया जाता।नकचरे को अलग अलग किया जाता है। इसके बाद कचरे के निपटारे के लिए कोई सही से तरीका है।

बीयू ने जो अध्ययन किया है, इसमें पाया कि शहर के भ्रामंगलाजलाशय का पानी इतना प्रदूषित हो चुका है कि खेती के लायक भी नहीं रहा है। यहां से जो नमूने लिए गए, इसमें पाया कि पानी में ईकोलाई और फेकलस्ट्रेप्टोकोकी जैसे सूक्ष्मजीवों का स्तर डब्ल्यूएचओ की तय मात्रा से कहीं अधिक है।

बीयू के डीइएस की

चेयरपर्सन और प्रोफेसर, नंदिनी एन ने कहा कि प्रदूषण को लेकर हम दोहरी समस्या से जूझ रहे हैं। एक तो यह है कि हवा में 2.5 particlem से कम आकार वाले धुल कणों की मात्रा बढ़ रही है। जो सांस के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर रही है। रही सही कसर हवा में मौजूद बैक्टीरिया और फफूंदी पूरी कर रहे हैं। जो हव के साथ मिल कर फेफड़ों में पहुंच रहे हैं। इससे संक्रमण और सांस की तकलीफ तेजी से बढ़ रही है।

इंडोर बायोएरोसोल्स

बायोएरोसोल्स सिर्फ बाहरी वातावरण में ही नहीं बल्कि घर के अंदर भी मौजूद है। जैसे कि घरों की साजसज्जा में जो सामान प्रयोग किया गया है, इससे भी फफूंद और जीवाणुओं पनप सकते हैं।

निर्माण सामग्री,दीवारों, छत, और फर्श के अंदर

फफूंद हो सकती है। ऐसे घर जिसमें ताजी हवा का प्रवेश न हो तो वहां इस तहर का प्रदूषण होने का अंदेशा ज्यादा रहता है।

डाक्टर नंदिनी के अनुसार वातानुकूलित कमरे में एसी का फ़िल्टर यदि लंबे समय तक नहीं बदला गया तो वह बैक्टीरिया और फफूंद की वृद्धि की वजह बन सकता है। यह समस्या वातानुकूलित एसी बसों और सिनेमाघरों में भी हो सकती है।

स्वास्थ्य पर असर

बायोएरोसोल के संपर्क में आने से संक्रामक रोग हो सकते हैं जो वायरस, बैक्टीरिया,फफूंद से उत्पन्न होते हैं। इसमें अस्थमा, एलर्जी राइनाइटिस और कैंसर के साथ साथ सांस की समस्या हो सकती है।

बैक्टीरियल एरोसोल या बायोएरोसोल फेफड़ों में और मूत्र मार्ग में संक्रमण की वजह बन सकता है।

बीयू ने अपने अध्ययन में बताया कि यदि इस सब से बचा जा सकता है। यदि हम

घरों, कार्यालयों से हवा का उचित आवागमन रखे। एयर प्यूरीफायर का उपयोग करे। उचित वेंटिलेशन सिस्ट्महो।

विशेषज्ञों के अनुसार

बाहरी बायोएरोसोल को हम , झीलों के उचित रखरखाव, कचरा नियंत्रण और उचित साफ सफाई के बिना नियंत्रित नहीं कर सकते हैं। इस ओर हमें ध्यान देना होगा। इसलिए जरूरी है, अपने घर और बाहर हर जगह साफ सफाई का ध्यान रखना होगा। इसके साथ ही हमे वह विकल्प अपनाने होंगे, जिससे वातावरण साफ सुथरा बना रहे। तभी हम प्रदूषण मुक्त हवा में सांस ले सकते हैं।

(कपिल काजल बेंगलुरु के स्वतंत्र पत्रकार है वह  101Reporters.com, अखिल भारतीय ग्रासरुट रिपोर्टर्स नेटवर्क के सदस्य है)

Related posts

अड़चनों के बावजूद तैयार हुआ सरदार सरोवर डैम: पीएम मोदी

Kamal Tiwari
7 years ago

कैशलेस इकॉनमी का पीएम मोदी का सपना हुआ साकार, 3 गुना बढ़ा डिजिटल ट्रांजैक्शन

Desk
6 years ago

जम्मू-कश्मीर: CRPF के काफ़िले पर ग्रेनेड हमला!

Namita
7 years ago
Exit mobile version