इस तरह के प्रस्ताव के पास होने की संभावना बहुत कम है क्योंकि जजों को हटाने की प्रक्रिया बहुत मुश्किल है. इन्हीं वजहों से आजादी के बाद से लेकर आज तक किसी भी जज को महाभियोग प्रस्ताव से हटाया नहीं जा सका है.
जस्टिस दीपक मिश्रा इसी साल अक्टूबर में रिटायर होने वाले हैं
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस(सीजेआई) दीपक मिश्रा के खिलाफ विपक्ष महाभियोग प्रस्ताव लेकर आया है. विपक्षी पार्टियों ने उपराष्ट्रपति वेकैंया नायडू को महाभियोग नोटिस सौंप दिया है. इस मामले में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कहा, ‘हम चाहते थे कि ऐसा दिन कभी ना आए, लेकिन कुछ खास केसों पर सीजेआई के रवैये की वजह से महाभियोग लाने पर हम मजबूर हुए.’ सिब्बल ने कहा कि सीजेआई के कुछ प्रशासनिक फैसलों पर आपत्ति है. चीफ जस्टिस पर अपने पद की मर्यादा तोड़ने का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि न्यायपालिका के खतरे में आने से लोकतंत्र पर खतरा है. इन परिस्थितियों में बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि क्या विपक्ष द्वारा पेश किया गया यह प्रस्ताव संसद के दोनों सदनों में पास हो पाएगा?
ऐसा इसलिए क्योंकि आजादी के बाद से लेकर आज तक किसी भी जज को महाभियोग प्रस्ताव से हटाया नहीं जा सका है. उसका सबसे बड़ा कारण यह है कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जज को संविधान में पर्याप्त रूप से संरक्षण दिया गया है और इसलिए उनको महाभियोग प्रस्ताव से हटाना बेहद मुश्किल है. इसकी प्रक्रिया भी काफी जटिल है.
इस संदर्भ में महाभियोग प्रस्ताव की प्रक्रिया पर आइए डालते हैं एक नजर:
महाभियोग प्रस्ताव:
संविधान के अनुच्छेद 124(4) और जजेज (इंक्वायरी) एक्ट, 1968 में जजों के खिलाफ महाभियोग का जिक्र किया गया है. इनके मुताबिक सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जज के खिलाफ अक्षमता और गलत व्यवहार के आधार पर महाभियोग लाया जा सकता है. इस तरह का प्रस्ताव लोकसभा या राज्यसभा में से कहीं भी पेश किया जा सकता है. यह प्रस्ताव पेश करने के लिए लोकसभा में कम से कम 100 सांसदों और राज्यसभा में 50 सांसदों के हस्ताक्षर की जरूरत होती है. इसके साथ ही जज को हटाने के लिए संसद के दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पास करना जरूरी है.
तीन सदस्यीय कमेटी:
यदि इस तरह का कोई प्रस्ताव पास हो भी जाता है तो आरोपों की जांच के लिए तीन सदस्यों की एक कमेटी बनाई जाती है. इस कमेटी में एक सुप्रीम कोर्ट के जज, किसी भी हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस और एक न्यायविद शामिल होते हैं. इनमें से न्यायविद को लोकसभा के स्पीकर या राज्यसभा के सभापति नामित करते हैं. यह न्यायविद कोई जज, कोई वकील या कोई विद्दान हो सकता है. रिपोर्ट तैयार करने के बाद कमेटी उसे लोकसभा के स्पीकर या राज्यसभा के सभापित को सौंपती है. इसके साथ ही महाभियोग प्रस्ताव चाहे किसी भी सदन में लाया जाए, लेकिन उसे पास दोनों सदनों में होना पड़ेगा. प्रस्ताव को पास करने के लिए वोटिंग के दौरान सभी सांसदों का दो तिहाई बहुमत हासिल करना जरूरी है. दोनों सदनों में महाभियोग प्रस्ताव पास होने के बाद राष्ट्रपति प्रेसीडेंसियल आर्डर से जज को हटा सकते हैं.
क्या विपक्ष के पास संख्याबल है?
राज्यसभा में कुल 245 सांसद हैं. इस सदन में महाभियोग प्रस्ताव पास करने के लिए दो तिहाई बहुमत यानी 164 सांसदों के वोट की जरूरत होगी. राज्यसभा में सत्ताधारी एनडीए के 86 सांसद हैं. इनमें से 68 बीजेपी के सांसद हैं. यानी इस सदन में कांग्रेस समर्थित इस प्रस्ताव के पास होने की संभावना नहीं है. लोकसभा में कुल सांसदों की संख्या 545 है. दो तिहाई बहुमत के लिए 364 सांसदों के वोटों की जरूरत पड़ेगी. यहां विपक्ष बिना बीजेपी के समर्थन के ये संख्या हासिल नहीं कर सकता क्योंकि लोकसभा में अकेले बीजेपी के ही 274 सांसद हैं.