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मोदी लहर को रोकने के लिए विपक्ष का फ़ॉर्मूला ‘तीसरे मोर्चा’

third front

नागालैंड और त्रिपुरा में बीजेपी के प्रदर्शन ने विपक्षी दलों को हैरान और परेशान कर दिया है. विपक्षी दल परेशान हैं और ये तय नहीं कर पा रहे हैं कि बीजेपी की बढ़ती ताकत को कैसा रोका जाए जो कि नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व में दिनों-दिन बढ़ती जा रही है. देश के हर कोने में मौजूद विपक्षी दल अब एक छत के नीचे आने को तैयार दिखाई दे रहे हैं और ऐसे में लोकसभा चुनाव से पहले तीसरा मोर्चा अस्तित्व में आ जाये, तो हैरानी नहीं होनी चाहिए. तीसरे मोर्चे को लेकर हालाँकि कई बार कोशिशें हुईं लेकिन राजनीतिक महत्वकांक्षा का परित्याग कोई नेता या दल करता हुआ दिखाई नहीं दिया. लेकिन पूर्वोत्तर के राज्यों में बीजेपी की जीत के बाद अब तमाम विपक्षी दल बीजेपी से लोहा लेने के लिए एक छत के नीचे धीरे-धीरे ही सही लेकिन आते दिखाई दे रहे हैं.

बीजेपी के खिलाफ विपक्षी दल हो रहे एक

गोरखपुर और फूलपुर में 11 मार्च को होने वाले चुनाव से पहले यूपी में अखिलेश यादव और मायावती ने अप्रत्यक्ष रूप से हाथ मिला लिए हैं. दूसरी ओर तेलंगाना के सीएम चंद्रशेखर राव ने मोदी को हराने के लिए तीसरे मोर्चे की पहल की है. इससे पहले बिहार में एनडीए छोड़कर जीतन राम मांझी के आरजेडी में जाने को भी इसी नजरिये से देखा जा रहा है.

उत्तर भारत में चंद्रशेखर राव का प्रभाव नहीं

बता दें कि चंद्रशेखर राव तेलंगाना के सीएम हैं और तेलंगाना राष्ट्र समिति यानी टीआरएस पार्टी के अध्यक्ष भी हैं. अलग तेलंगाना राज्य के लिए आंदोलन चलाकर राव बड़े नेता के रूप में उभरकर सामने आये. हालांकि उन्हें अभी तक राष्ट्रीय छवि का नेता नहीं माना जाता है लेकिन 2019 से पहले तीसरे मोर्चे की पहल कर उन्होंने अपनी छवि को राष्ट्रीय बनाने का प्रयास किया है. राव उत्तर भारत में प्रभावी नहीं हैं और ऐसे में उन्हें अन्य दलों को लेकर ही चलना पड़ेगा जिसकी कोशिश वो कर रहे हैं.

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चंद्रशेखर राव ने की तीसरे मोर्चे की पहल

राव के इस पहल के साथ ही तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी, एमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी ने उनके समर्थन का एलान कर दिया है. असद्दुदीन ओवैसी ने राव के उस बयान का स्वागत किया है जिसमें उन्होंने कहा था कि जनता बीजेपी सरकार से ऊब चुकी है और कांग्रेस भी विकल्प नहीं है ऐसे में तीसरे मोर्चे का आह्वाहन होना चाहिए. ऐसे में ये संकेत मिल रहे हैं कि विपक्ष अब बीजेपी के खिलाफ मजबूत फ्रंट बनाकर चुनाव में उतरने की कोशिश कर रहा है.

यूपी में मायावती-अखिलेश आये साथ

इसके पहले लगातार अखिलेश यादव कहते रहे कि बुआ का साथ मिले तो बीजेपी को हराया जा सकता है तो वहीँ अब मायावती ने भी अखिलेश यादव के सुर में सुर मिलाते हुए उपचुनाव में समर्थन देने की बात खुले मंच से की और इसके बदले राज्यसभा चुनाव में सपा का साथ माँगा. दोनों दलों की ये डील बीजेपी को कितना नुकसान पहुंचाएगी ये तो अब वक्त ही बताएगा.

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