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 बढ़ता प्रदूषण भंग कर रहा  एकाग्रता, मस्तिष्क के काम करने की शक्ति हो रही कम

कपिल काजल
बेंगलुरु:  तेजी से बढ़ रहा प्रदूषण के प्रतिकूल प्रभाव से मस्तिष्क भी अछूता नहीं है। इसका सीधा असर एकाग्रता पर पड़ रहा है। इसके साथ ही दिमाग सुस्त हो रहा है। सीखने, समझने और तर्क करने की क्षमता कम हो रही है। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि बढ़ती उम्र के साथ इसका असर और ज्यादा बढ़ जाता है।
चीन के पेकिंग विश्वविद्यालय और एूएसए के येल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने वायु प्रदूषण के मस्तिष्क पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव को जानने के लिए एक शोध किया। इसमें पाया गया कि प्रदूषण दिमाग की ग्रहण करने की क्षमता को कम करता है। जैसे जैसे उम्र बढ़ती है प्रदूषण का असर भी उतना ही ज्यादा होना शुरू हो जाता है। यह भी सामने आया कि खासतौर पर पुरुषों में इसका असर ज्यादा नजर आता है।
भारतीय विज्ञान संस्थान के प्रोफेसर डाक्टर एच. परमेश ने एक कांफेंस में बताया कि हवा में मौजूद सुक्ष्म कण हार्मोन को प्रभावित करते हैं, इससे दिमाग की तर्क संगत निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित होती है।
इसी तरह से विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रदूषण की वजह से भ्रूण का दिमाग पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाता। इसी तरह से प्रदूषित वातावरण में यदि एक गर्भस्थ महिला रहती है तो उसके भ्रूण के स्नायु तंत्र पर इसका विपरीत असर पड़ता है। जो आगे चल कर उस बच्चे के दिमाग की क्षमता पर भी प्रभाव डालता है। इससे बच्चे का सामान्य व्यवहार व दिमाग पर भी असर पड़ता है। डाक्टर परमेश ने यह भी बताया कि वायु प्रदूषण ऑक्सीडेटिव तनाव(क्योंकि सेल और ऊतक क्षतिग्रस्त हो जाते हैं) को बढ़ता है। जिसका सीधा असर हमारे अंगों पर पड़ता है। वाहनों से निकलने वाला धुआं शिशु के दिमाग की क्षमता पर प्रतिकूल असर डालता है।

नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इन्फॉर्मेशन (एनसीबीआई ) ने एक अध्ययन किया कि बढ़ता   प्रदूषण का हमारे मस्तिष्क के लिए कितना खतरनाक है, इसका कितना प्रतिकूल असर पड़ता है।  रिपोर्ट में पाया गया कि हवा में मौजूद सुक्ष्म कण  सांस के माध्यम से फेफड़ों में  प्रवेश करते हैं, यहां से  खून के कणों के साथ मिल जाते हैं। लेकिन ऐसे तथ्य सामने आए हैं, जिससे पता चल रहा है कि  अति सुक्ष्म कण तो सांस के माध्यम से नाक से होते हुए  सीधे हमारे मस्तिष्क तक पहुंच जाते हैं। यहां वह हमारे
स्नायु तंत्र को प्रभावित करते हैं। इससे शरीर में  ऑक्सीडेटिव तनाव बढ़ जाता है। इससे जहां संक्रमण का अंदेशा बढ़ जाता है, इसके साथ ही फेफड़ों पर भी इसका असर पड़ता है।

(स्रोत- एनसीबीआई)

यूएस-चीन के अध्ययन में बताया  कि बढ़ता प्रदूषण बुजुर्गांं में अल्जाइमर के साथ साथ भूलने की आदत, भ्रम जैसी समस्या भी आम है।
हृदय रोग विशेषज्ञ डॉक्टर  सोमशेखर एआर ने बताया कि  हृदय, फेफड़े और मस्तिष्क आपस में जुडे़ हुए हैं, ऐसे में यदि प्रदूषण का अति सुक्ष्म कण भी शरीर में प्रवेश करता है तो वह
फेफड़ों से होता हुआ  रक्त वाहिकाएं के रास्ते खून के साथ मिल कर मस्तिष्क तक पहुंचत जाता है। इस तरह से यह दिमाग की क्षमता को प्रभावित करते हैं, जो धीरे धीरे अल्जाइमर का कारण बन जाता है।

एनसीबीआई की एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, गैर-मीथेन हाइड्रोकार्बन और
पार्टिकुलेट मैटर काम करने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है। इसी तरह से  कार्बन और सुक्ष्मकणों के प्रदूषण की चपेट में आने वाली गर्भवति महिला के भ्रूण पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।

बेंगलुरु के आस पास ऐसे प्रदूषित क्षेत्रों की कमी नहीं है। इसमें  बिदादी, राजाजी नगर, पीन्या, नेलमंगला और व्हाइटफील्ड जैसे औद्योगिक क्षेत्र के वायुमंडल में  भारी धातुओं का प्रदूषण है।  बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर शशिधर गंगैया ने बताया कि   सीसा, जस्ता, पारा,  जैसी भारी धातुओं से होने वाले प्रदूषण का मस्तिष्क पर प्रतिकूल असर डाल सकता है।

(कपिल काजल बेंगलुरु के स्वतंत्र पत्रकार है, वह  101Reporters.comअखिल भारतीय ग्रासरुट रिपोर्टस नेटवर्क के सदस्य है। )

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