वैसे तो चुनावों में सभी दल और उनके नेता एक-दूसरे पर आरोप लगाते रहते हैं, एक-दूसरे पर कीचड़ उछालते रहते हैं, और तरह-तरह के शब्दों का इस्तेमाल करते रहते हैं. लेकिन कई बारगी नेता अपनी सीमायें तोड़कर ऐसे विवादित बयान दे जाते हैं, जो उनके और उनके दल के लिए मुसीबत का कारण बन जाता है. ऐसे बयानों की फेहरिस्त काफी लम्बी है, जब चुनाव प्रचार के दौरान नेता शब्दों की मर्यादा को तोड़कर आगे बढ़ जाते हैं, लेकिन पिछले कुछ समय से नेताओं के अलावा अब राजनीतिक दलों के नामकरण का सिलसिला शुरू हो चुका है.
चुनाव प्रचार के दौरान राजनीतिक दलों का नामकरण:
इन नामों को जब ये नेता चुनावी भाषण के दौरान जनता के सामने सुनाते हैं, तो वाहवाही मिलती है लेकिन तभी विरोधी इसके जवाब में एक और नाम का खुलासा कर अपने समर्थकों की वाहवाही बटोरने में लग जाता है.
- 2015 के बिहार चुनाव में नरेंद्र मोदी ने RJD को ‘रोजाना जंगलराज का डर‘ कहा था.
- जिसके बाद जवाबी हमले में नीतीश कुमार ने BJP को ‘भारतीय झूठी पार्टी‘ कहा था.
- यही नहीं, यूपी चुनाव में भी ये नामकरण का क्रम बरकरार है.
- नरेद्र मोदी ने यूपी में एक रैली के दौरान SCAM का मतलब ‘सपा, कांग्रेस, अखिलेश और मायावती‘ बताया था.
- जबकि अखिलेश यादव ने A और M यानी अमित शाह और मोदी को यूपी से भगाने की बात कही थी.
- वहीँ एक बार फिर नरेंद्र मोदी ने 20 फ़रवरी को जालौन में बसपा को ‘बहनजी संपत्ति पार्टी’ बताया.
- इसका जवाब भी बसपा सुप्रीमो ने तुरंत दिया जब, मायावती ने नरेंद्र मोदी के नाम के शुरू के अक्षरों को लेकर नेगेटिव दलित मैन (दलित विरोधी मोदी) कहा.
- पिछले कुछ और नेताओं की बात करें तो इसी प्रकार नरेंद्र मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में अरविन्द केजरीवाल को AK49 कहा था.
- वहीँ DNA को लेकर 2015 बिहार चुनाव के दौरान नीतीश कुमार और बीजेपी में खुली जंग छिड़ गई थी.
- जबकि 2014 के महाराष्ट्र इलेक्शन में भी NCP को पीएम मोदी ने ‘नैचुरली करप्ट पार्टी‘ कहा था.
- वहीँ कुछ नेताओं के बोल ऐसे भी हैं जिनका जिक्र सभ्य समाज में नहीं किया जाता है. हालाँकि ऐसे शब्दों का प्रयोग करते वक्त नेता पद की प्रतिष्ठा का खयाल तक नहीं करते हैं, जो कि एक चिंताजनक विषय है.
यूपी चुनाव में जुबानी जंग हुई तेज:
हैरानी की कोई बात नहीं, इसमें क्योंकि ऐसे नामकरण यूपी चुनाव से पहले भी चर्चा में रहे हैं. विवादित बयानों का ये सिलिसला बदस्तूर जारी है. यूपी चुनाव के तीन चरण के मतदान होने के बाद अभी 4 चरण के चुनाव बाकी हैं और जिस प्रकार से यूपी नेताओं ने जुबानी जंग के सहारे एक दूसरे पर व्यक्तिगत हमले करने शुरू किये हैं, ये देखना होगा कि ये रेस कब और किस मोड़ पर जाकर ख़त्म होगी. ये जरुर है कि इस प्रकार के नामों के कारण रैली में भाषण की चर्चा होने लगती है लेकिन राजनीति में इसका कितना महत्व रह गया है ये समझ पाना जनता के लिए टेढ़ी खीर ही साबित होता रहा है.