समाजवादी पार्टी में छिड़ा महासंग्राम अब सिर्फ चाचा और भतीजे का गृह युद्ध नहीं रहा। परिवार से शुरू हुई इस कलह ने पूरी समाजवादी पार्टी को अपनी जद में ले लिया है। अभी तक अखिलेश और शिवपाल के बीच वर्चस्व की जंग बतायी जा रही थी जिसने अब पिता-पुत्र के रिश्तों को फीका करना शुरू कर दिया है।
बदले हालातों में अब अखिलेश और मुलायम के बीच जंग शुरू हो गई है। या फिर इसे सपा में नई और पुरानी पीढ़ी का संघर्ष माना जा सकता है। इस जंग में जहां पुरानी पीढ़ी मुलायम और शिवपाल हावी होते जा रहें हैं, वहीं नई पीढ़ी के कई योद्धा बलि की भेंट चढ़ गए। अब ऐसे में प्रदेश की सियासत से ज्यादा लोगों की निगाहें इस बात पर टिकीं हैं कि मुलायम कुनबे की यह तकरार कहा तक जाएगी।
- इस जंग की जद में पहले तो अखिलेश यादव सपा प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी गंवा बैठे।
- उसके बाद उनके खास लोगो को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
- बात सिर्फ यही खत्म नही हुई, अखिलेश को इस बात के लिए भी मजबूर किया गया कि सभी बर्खास्त मंत्रियो को वापस लेना पड़ा।
- इसके बाद अब पार्टी के टिकट बंटवारे से भी अखिलेश को साइड लाइन कर दिया गया है।
- एक के बाद एक ये सभी फैसले मुलायम ने अखिलेश के खिलाफ ही लिये।
- पिता के इन फैसलो से अखिलेश पार्टी के भीतर लगातार कमजोर होते जा रहे हैं।
- आखिर क्या वजह है कि जिस बेटे को मुलायम ने पांच साल पहले परिवार की नाराजगी के बावजूद मुख्यमंत्री बनाया था।
- अब वह उसी को कमजोर कर रहे हैं, ऐसा क्या हो गया कि मुलायम अपने ही बेटे के खिलाफ होते जा रहे है।
- अखिलेश इस कदर मजबूर हो चुके हैं कि उन्हें सार्वजनिक रूप से कहना पड़ रहा है कि उन्होने अपने सारे अधिकार छोड दिये।
जिसके पास होगा तुरूप का इक्का वही जीतेगाः
- शिवपाल ने मुलायम का हाथ सिर पर आते ही सबसे पहले अखिलेश के खास लोगो को पार्टी से बाहर निकाल दिया।
- यही नहीं मुलायम के आशीर्वाद से शिवपाल ने अपनी पसंद के लोगों को दोबारा मंत्री भी बनवा लिया।
- लेकिन अब ऐसे भी संकेत मिल रहें हैं कि अखिलेश अधिक समय तक शांत नहीं बैठने वाले हैं।
- अखिलेश अभी तक अपने पिता मुलायम सिंह यादव के साथ उनके 5 विक्रमादित्य मार्ग के मकान मे रहते आयें हैं।
- लेकिन इस पूरे प्रकरण के बाद वे इसी महीने की 7 तारीख को मुलायम का आवास छोड़ देंगे।
- अखिलेश अपने आवास 4 विक्रमादित्य मार्ग के नये आवास में शिफ्ट हो जायेगे, जो उन्हें काफी पहले मिला था।
- सूत्रों के अनुसार, जिन युवा नेताओ को शिवपाल ने निकाला है, वह अब अखिलेश के इस नये घर से इलेक्शन मैनेजमेट का काम देखेगे।
आपको याद होगा पिछले चुनावों में मुलायम का घर इलेक्शन मैनेजमेट का केन्द्र था, लेकिन इस बार लगता है अखिलेश नये इरादों के साथ मैदान में उतर रहें हैं।
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क्यों अखिलेश से खिन्न हुए मुलायमः
- सीएम अखिलेश 2017 के चुनावों में अपनी बेदाग छवि और सरकार के विकास के कामों के साथ जाना चाहते हैं, लेकिन मुलायम और शिवपाल मानते हैं कि सिर्फ विकास के काम गिनाकर चुनाव नही जीता जा सकता।
- यूपी सीएम अखिलेश पार्टी में किसी भी दागी या बाहुबली को लिये जाने के खिलाफ है लेकिन मुलायम यूपी की जातीय राजनीति को बखूबी जानते हैं, उन्हें मुख्तार और अमनमणि जैसे लोगो को पार्टी में लेने से कोई परहेज नही है।
- मुख्यमंत्री का मानना है कि गठबंधन सपा को कमजोर बनाएगा, जबकि शिवपाल क्षेत्रीय आधार पर दूसरे दलो से गठबंधन के पक्षधर हैं।
- अखिलेश की अपनी युवा टीम है जो पुराने लोगो के इशारो पर काम न करके अखिलेश के इशारे पर काम करती है, लेकिन पुरानी पीढ़ी इस बात को नहीं भूलने देना चाहती है कि उन्होंने ही इस पार्टी को खड़ा किया।
- सबसे बड़ा पेंच टिकट बंटवारे को लेकर फंसा है, अखिलेश चाहते है कि टिकटो का बंटवारा उनकी मर्जी से हो। इसमें वह पिता की इच्छा का सम्मान तो चाहते हैं लेकिन मुलायम औऱ शिवपाल का दखल उन्हें बेचैन कर रहा है।
- अखिलेश को लगता है कि उनके विकास के एजेडे औऱ बदलती सोच की वजह से पांच साल पहले सूबे की जनता से उन्हे वह प्रचंड बहुमत दिया जो कभी मुलायम भी हासिल नही कर सके थें, वहीं मुलायम इस बात से चिंतित है जिस पार्टी को उन्होने खून पसीन से सींचा, अखिलेश उस सोच औऱ विचारधारा के साथ ही उनके पुराने वफादारो को भी खत्म कर रहे हैं।
दो पीढ़ियों के बीच संघर्षः
- ऐसी तमाम बाते है जो मुलायम औऱ अखिलेश के बीच दूरिया बढा रही है।
- जानकारों का कहना है कि किसी समय में अंग्रेजी और कंप्यूटर का विरोध करने वाली सपा अब अखिलेश राज मे लैपटाप , अंग्रेजी औऱ स्मार्टफोन की बात कर रही है।
- पार्टी में हुआ यह बदलाव दो पीढियो के बीच संघर्ष का संकेत है।
- दरअसल यह पूरा झगडा समाजवादी पार्टी पर कब्जेदारी औऱ वर्चस्व को लेकर है।
- ऐसे में विरोधियों कि निगाहें हर वक्त परिवार की इस जंग पर टिकी रहती हैं।
- विरोधी इस बात को बखूबी समझते हैं कि अगर सपा कमजोर हुई तो उसका सीधा फायदा उन्हें ही मिलेगा।
- विरोधियों का कहना है कि कुनबे का यह झगड़ा ताबूत की आखिरी कील साबित होगा।