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जब राम मंदिर के लिए कांग्रेस लाई थी अध्यादेश और बीजेपी ने किया था विरोध

जैसे जैसे चुनाव आ रहा है वैसे वैसे राम मंदिर का मुद्दा भी गर्म होता जा रहा है. इसी के साथ इन दिनों राम मंदिर निर्माण के लिए अध्यादेश लाने की मांग बढ़ती ही जा रही है. वैसे अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए अध्यादेश की मांग कोई नई मांग नहीं है. भले है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार अभी इस विषय में सोच ही रही हो लेकिन तकरीबन 25 बरस पहले कांग्रेस सरकार ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए अध्यादेश लाया था.

बाबरी विध्वंस के बाद कांग्रेस सरकार लाई थी अयोध्या एक्ट:

साल 1992 में जब पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री थे, उस दौरान 6 दिसंबर को भाजपा की मदद से विश्व हिंदू परिषद की अगुवाई में हुए आन्दोलन में भाग लेने भाग लेते ही कार सेवकों ने बाबरी मस्जिद को गिरा दिया था. उसके एक महीने बाद साल 1993 जनवरी में कांग्रेस राम मंदिर निर्माण का अध्यादेश लाई थी.

तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने अपने अधिकार क्षेत्र का अधिग्रहण करते हुए अयोध्या अध्यादेश 7 जनवरी, 1993 को जारी किया था। बाद में, केंद्रीय गृह मंत्री एसबी चव्हाण द्वारा संसद में एक विधेयक पेश किया. पारित होने के बाद, विधेयक ‘अयोध्या एक्ट’ के रूप में जाना जाने लगा।

भाजपा ने किया था विरोध:

राम मंदिर अध्यादेश को बदलने के लिए विधेयक को तब्दील करते हुए चव्हाण ने कहा, “भारत के लोगों के बीच सांप्रदायिक सद्भाव और सामान्य भाईचारे की भावना को बनाए रखना जरूरी है।” यह वही तर्क है जिसे कई बीजेपी नेता आगे बढ़ा रहे हैं।

राम मंदिर अध्यादेश और बाद के अयोध्या अधिनियम को “विवादित संरचना की साइट और एक जटिल स्थापित करने के लिए उपयुक्त आसन्न भूमि” प्राप्त करने के लिए लाया गया था, जिसमें भगवान राम को समर्पित एक मंदिर होगा।

पूर्व पीएम नरसिम्हा राव ने अधिग्रहित की थी विवादित जमीन के पास भूमि:

नरसिम्हा राव सरकार ने 2.77 एकड़ की विवादित ज़मीन के आस-पास 60.70 एकड़ भूमि अधिग्रहित की। उस दौरान कांग्रेस सरकार ने अयोध्या में “एक राम मंदिर, एक मस्जिद, तीर्थयात्रियों के लिए सुविधाएं, पुस्तकालय, संग्रहालय और अन्य उपयुक्त सुविधाएं” बनाने की योजना बनाई।

बीजेपी ने अयोध्या अधिनियम का किया था विरोध:

लेकिन, अयोध्या अधिनियम राम मंदिर निर्माण का मार्ग बनने में असफल रहा। बीजेपी ने नरसिम्हा राव सरकार के अयोध्या अधिनियम का ज़ोर शोर से विरोध किया. तत्कालीन बीजेपी के उपाध्यक्ष एसएस भंडारी ने इसे “पक्षपातपूर्ण, छोटा और विकृत” कहा था।

मुस्लिम निकायों ने भी इसका विरोध किया। नरसिम्हा राव की अल्पसंख्यक सरकार का ये कदम ठंडे बसते में चला गया और उन्हें संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति संदर्भ के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में शरण लेनी पड़ी।

कांग्रेस सरकार ने किया था कोर्ट से सवाल:

सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष जो सवाल रखे वो ये थे कि राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद के निर्माण से पहले एक हिंदू मंदिर या कोई हिंदू धार्मिक संरचना मौजूद थी?

जस्टिस एम एन वेंकटचलिया, जे एस वर्मा, जीएन रे, एएम अहमदी और एसपी भरूचा के पांच न्यायाधीश खंडपीठ ने इस सवाल को उठाया लेकिन इसका जवाब देने का फैसला नहीं किया।

सुप्रीम कोर्ट ने 1994 में क्या कहा:

उच्चतम न्यायालय ने कांग्रेस के सवाल का जवाब देने के बजाए 1994 में अयोध्या अधिनियम की व्याख्या कर दी. सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत के फैसले में अयोध्या अधिनियम के उस भाग को भी ठुकरा दिया जिसमें अयोध्या विवाद से संबंधित सभी कानूनी कार्यवाही समाप्त करने की मांग की गयी थी. हालांकि अयोध्या अधिनियम फिर भी रहा।

वहीं कोर्ट ने कांग्रेस के उस विचार का समर्थन भी किया, जिसमें कांग्रेस ने अयोध्या में अधिग्रहित भूमि पर राम मंदिर, एक मस्जिद, एक पुस्तकालय और अन्य सुविधाओं के निर्माण की बात कही थी। लेकिन क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का विचार राष्ट्रपति के लिए बाध्यकारी नहीं है इसलिए अयोध्या अधिनियम बेकार साबित हुआ।

16 साल बाद इलाहाबाद कोर्ट ने दी थी 3 पक्षों को भूमि:

वहीं सोलह साल बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस मुकदमे पर अपना फैसला सुनाया। जिसमें उसने 2.77 एकड़ जमीन तीन पक्षों – राम लला, निर्मोही अखाड़ा (हिंदू पक्षकारों) और सुन्नी वक्फ बोर्ड (मुसलमानों पक्षकारों) के बीच बांटी।

अयोध्या मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा सामाजिक समझौते को चुनौती देने वाले सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गईं। अंतिम सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में अगले साल जनवरी या फरवरी में शुरू होने की संभावना है।

क्या विरोध करने वाली भाजपा सरकार लाएगी अध्यादेश:

अब सवाल ये उठता है कि क्या नरेंद्र मोदी अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का अधिनियम लायेंगे? वहीं सोमवार 29 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ हुई अपील की सुनवाई के दौरान भी इसी तरह की आवाजें उठी.

वहीं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) और भाजपा नेताओं ने अयोध्या में विवादित ज़मीन पर राम मंदिर निर्माण के लिए आवाज़ उठाई है. शीर्ष  न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा कि नई पीठ शीर्षक सूट पर सुनवाई शुरू करने की तारीख तय करेगी।

RSS ने कहा जल्द SC दे फैसला:

आरएसएस ने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट ने जल्द ही फैसला नहीं सुनाया तो मोदी सरकार मोदी सरकार को अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए कानून लाना चाहिए। विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने अधिक बल देकर कहा कि हिंदू सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का जिंदगी भर इंतज़ार नहीं कर सकते।

भाजपा ने नेता और मोदी सरकार के मंत्रियों ने सुब्रामनियम स्वामी और गिरिराज सिंह ने भी अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए अध्यादेश की मांग की। वहीं कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया ने मोदी सरकार से इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश की प्रतीक्षा करने को कहा।

सरकार की तरफ से बोलते हुए कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा लोग इस मामले का जल्द निपटारा चाहते हैं और केंद्र को सर्वोच्च न्यायालय में पूर्ण विश्वास है

Source: India Today

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