राजधानी के चिनहट इलाके में गर्भवती को एम्बुलेंस ना मिलने से ई-रिक्शा में प्रसव होने के मामले में डीजी हेल्थ ने 3 दिन में रिपोर्ट मांगी है। डीजी हेल्थ ने एम्बुलेंस 102 के साथ लोहिया अस्पताल के डायरेक्टर से भी जबाव मांगा है। बता दें कि दो दिन पहले एम्बुलेंस 102 को काल करने के घंटो बाद भी एम्बुलेस नहीं पहुंची तो महिला को ई-रिक्शा में ही प्रसव हुआ था। प्रसूता के साथ लोहिया अस्पताल में स्टाफ ने भी लापरवाही बरती थी।
कई बार फोन मिलाया फिर लेकिन नहीं मिली थी मदद
- गौरतलब है कि, चिनहट की गर्भवती सादिया (28) को गुरुवार सुबह 9:45 बजे प्रसव पीड़ा शुरू हुई।
- इस पर परिवारीजनों ने एंबुलेंस नंबर 102 डायल किया।
- फोन करने पर एंबुलेंस के इंतजार करने की बात कही गई।
- करीब 1 घंटे तक परिवारीजन बार-बार 102 एंबुलेंस को फोन लगाते रहे लेकिन वह नहीं आई।
- इधर गर्भवती की हालत बिगड़ने पर परिवारीजन ई-रिक्शा से लोहिया अस्पताल ले जा रहे थे तभी रास्ते में प्रसव हो गया।
- अस्पताल पहुंचने पर तुरंत जच्चा और बच्चा को भर्ती कर लिया गया।
- इस संबंध में नेशनल एंबुलेंस सेवा के प्रवक्ता अजय यादव का कहना है कि चिनहट जैसे इलाके में 1 घंटे तक एंबुलेंस ना मिलना संभव नहीं है।
- एंबुलेंस समय पर क्यों नहीं पहुंच इसकी जांच की जाएगी।
अस्पताल प्रशासन पर लापरवाही का आरोप
- महिला के पति हकीमुद्दीन ने बताया कि वो दुकानों पर ब्रेड, बिस्कुट और नमकीन की सप्लाई करता है।
- उसकी कोई फिक्स वेतन नहीं है।
- उसकी पहले से तीन बेटियां है।
- बड़ी बेटी एलिमा (9), दूसरी बेटी इकरा(6) और सबसे छोटी बेटी जिकरा (3) है।
- घर में कोई बेटा नहीं था, दोनों एक बेटा चाहते थे।
- उसकी पत्नी ने बेटे को जन्म दिया।
- यह बच्चा उन दोनों का चौथी संतान है।
- हकीमुद्दीन ने बताया जब वे किसी तरह पेशेंट को ई-रिक्शे से लेकर हॉस्पिटल पहुंचे तो वहां पर कोई भी नर्स या महिला कर्मचारी उसे स्ट्रेचर से अंदर ले जाने के लिए नहीं आई।
- वह स्ट्रेचर के लिए इधर-उधर भगते रहे।
- थोड़ी देर बाद उनकी नजर एक स्ट्रेचर पर पड़ी।
- उसके बाद वे दौड़कर स्ट्रेचर खींच कर लेकर आए।
- उसके बाद खुद ही स्ट्रेचर खींचते हुए हॉस्पिटल की इमरजेंसी के अंदर ले गए।
- तब जाकर डॉक्टर्स ने उसे बच्चे को देखा।
जच्चा बच्चा के लिए ये हैं सुविधाएं
- गर्भवती को निशुल्क इलाज के लिए घर से अस्पताल ले जाना।
- प्रसव के बाद जच्चा-बच्चा को अस्पताल से घर पहुंचाना।
- गर्भवती व शिशु को बेहतर इलाज के लिए एक से दूसरे अस्पताल छोड़ना।
- 1 साल तक के शिशु को बीमार होने पर घर से अस्पताल ले जाना और छोड़ना।