उत्तर प्रदेश में एक तरफ जहाँ स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनने की बात चल रही है। वही दूसरी ओर प्रदेश के हीमोफीलिया से पीड़ित मरीजों को इलाज ही नहीं मिल पा रहा है। प्रदेश के संजय गाँधी पीजीआई की बात करे या फिर किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी की। कही भी हीमोफीलिया के मरीजों को इलाज नहीं मिल पा रहा है। इसका कारन है कि स्वास्थ्य विभाग ने हीमोफीलिया मरीजों के इलाज के लिए जरुरी फैक्टर खरीदने का बजट ही जारी नहीं किया है।
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बजट का है अभाव
- हीमोफीलिया मरीजों को इलाज के लिए फैक्टर 7,8 और 9 की जरुरत होती है।
- इन तीनों ही फैक्टर की प्रदेश के अस्पतालों में कमी होने सी हीमोफीलिया मरीजों को इलाज नहीं मिल पा रहा है।
- आपको बता दें कि प्रदेश में हीमोफीलिया के करीब 1700 मरीज हैं।
- हीमोफीलिया से पीड़ित बच्चों को फैक्टर आठ इंजेक्शन के माध्यम से दिया जाता है।
- लेकिन बीते करीब चार महीने से हीमोफीलिया मरीजों के लिए आने वाले बजट के अभाव में उनका इलाज बंद है।
- मेडिकल कॉलेज में जब इसकी कमी होती है तो मरीजों को पीजीआई भेज दिया जाता है।
- लेकिन अब वहां भी मरीजों को इलाज नहीं मिल पा रहा है क्यूंकि वहां भी फैक्टर का अभाव है।
- डॉक्टर्स के मुताबिक हीमोफीलिया मरीज के इलाज में एक साल में करीब ढाई लाख का खर्च आता है।
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क्या है हीमोफीलिया
- हीमोफीलिया एक जेनेटिक बीमारी है इसमें मरीज के रक्त का थक्का नहीं बनता है।
- ऐसे में हलकी सी चोट से भी मरीज के घाव से खून बहने लगता है।
- इसमें कभी कभी मरीज को आतंरिक रक्तस्राव भी होने लगता है।
- लगातार खून बहने से खून की कमी हो जाती है।
- खून में थक्का न बनना फैक्टर आठ की कमी के कारण ही होता है।
- ऐसे मरीजों को समय समय पर इंजेक्शन लग्वीना पड़ता है।
- इसमें मरीज को चलने फिरने में भी समस्या होती है।
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