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फेसबुक वार से शुरू होकर कासगंज हिंसा तक पहुंचा राजपूताना ‘संकल्प’

Kasganj riots starting from Facebook War chandan-gupta-kasganj

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रिहाई मंच ने कासगंज सांप्रदायिक हिंसा में युवाओं के ‘संकल्प’ नामक संगठन को मुख्य षडयंत्रकर्ता करार दिया है। संकल्प फाउंडेशन के अध्यक्ष अनुकल्प विजय चन्द्र चौहान द्वारा चन्दन की मौत के बाद सोशल मीडिया और फेसबुक पर एक लम्बा वीडियो पोस्ट किया गया जिसमें चन्दन की मौत के गंभीर परिणाम मुस्लिम समाज को भुगतने की चेतावनी दी गई थी। इसके बाद अगले दो दिनों तक लगातार मुसलमानों के घरों और दुकानों पर हमले और आगजनी की घटनाएँ हुईं।

रिहाई मंच नेता राजीव यादव और मोहम्मद आरिफ ने कासगंज में हुई सांप्रदायिक हिंसा की जांचपड़ताल हेतु अपना दो दिवसीय दौरा 28 और 29 जनवरी को पूरा किया। रिहाई मंच द्वारा कासगंज में हिंसा के पीड़ितों और घायलों से मुलाक़ात कर उनका हालचाल लिया गया। रिहाई मंच के जांच में प्रथम दृष्टया पाया गया कि कासगंज हिंसा की घटनाएं पूर्व नियोजित है और पुलिस के पूर्व संज्ञान में अंजाम दी गई है।

रिहाई मंच नेता मोहम्मद आरिफ और राजीव यादव ने बताया कि कासगंज में बड्डूनगर स्थित अब्दुल हमीद तिराहे पर 26 जनवरी को ध्वजारोहण कार्यक्रम के दौरान हिंदूवादी संगठन ‘संकल्प’ द्वारा जबरन भगवा झंडों के साथ हथियारबंद रैली निकालने तथा उकसावे भरे नारों जैसे “हिंदुस्तान में रहना है तो वंदेमातरम् कहना है “ और “हिंदी-हिन्दू-हिन्दुस्तान, कटुए भागो पाकिस्तान’ लगाने के दौरान झड़प की बात सामने आई है।

जिसके बाद पूर्वनियोजित तरीके से सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं को अंजाम दिया गया और पुलिस मूकदर्शक बनी रही और जब स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गयी तब जाकर पुलिस द्वारा फायरिंग की गई जिसमें नौशाद गोली लगने से घायल हो गया और अभिषेक गुप्ता उर्फ़ चन्दन की संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हो गई। यह कथित तिरंगा यात्रा भी अभिषेक उर्फ़ चन्दन गुप्ता के नेतृत्व में ही निकली गई थी।

हाल में प्राप्त वीडियो फुटेज इस बात की पुष्टि करते हैं। यह भी स्पष्ट हुआ है कि संकल्प फाउंडेशन द्वारा निकाली गई तथाकथित तिरंगा यात्रा में एबीवीपी के कार्यकर्ता भी शामिल थे और उनके हाथों में भगवा झंडे और तमंचे थे। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि इनके द्वारा मिलकर पूर्वनियोजित तरीके से सर्वप्रथम तिरंगा यात्रा के नाम पर उपद्रव करने के उद्देश्य से रैली निकाली गई और जानबूझकर मुस्लिम बाहुल्य इलाके में पहुँचने पर उकसावे भरी नारेबाजी की गई और वहां पहले से ध्वजारोहण करने के लिए इकठ्ठा हुए लोगों से झड़प हुयी।

गौरतलब है कि इस तथाकथित तिरंगा यात्रा की अनुमति भी शासन द्वारा नहीं ली गई थी और न ही इसकी सूचना शासन को दी गई थी। ये भी जानना आवश्यक है कि जिस अब्दुल हमीद तिराहे पर पहले से मुसलमान ध्वजारोहण करने के लिए इकठ्ठा हुए थे, वह कोई मुख्य सड़क न होकर एक संकरी गली है। ऐसे में एक साथ सैकड़ों मोटरसाइकिल के साथ अब्दुल हमीद तिराहे स्थित कार्यक्रम स्थल तक जाकर भगवा लहराते हुए नारेबाजी और ज़बरन वन्देमातरम् गाने के लिए धमकाना भी सोची समझी साज़िश का एक हिस्सा है। इसके बाद वहां माहौल तनावपूर्ण हो गया, इसकी सूचना तत्काल पुलिस प्रशासन को दी गई थी किन्तु पुलिस ने त्वरित कार्यवाही नहीं की। जिसके कारण कासगंज में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं को अंजाम दिया गया और तथाकथित तिरंगा रैली में पहले से हथियारों से लैस सांप्रदायिक तत्वों ने आगजनी और लूटपाट की घटनाओं को अंजाम देना शुरू किया।

रिहाई मंच के दौरे में पूर्वनियोजित तरीके से साम्प्रदायिक हिंसा की तैयारी की भी बात सामने आई है। बताया जाता है कि हिंसा से पूर्व सोशल साइट फेसबुक पर संकल्प फाउंडेशन के सदस्यों और मुसलमान लड़कों के बीच तकरार हुई थी और यह तकरार एक लम्बे समय तक चलती रही जिसपर 1000 से अधिक कमेन्ट किये गए थे। इस तकरार के बाद से ही संकल्प फाउंडेशन के सदस्यों की गुप्त बैठकें भी हुई थीं। इन्हीं आशंकाओं के चलते संकल्प फाउंडेशन के उपाध्यक्ष आयुष शर्मा उर्फ़ पंडित जी (आयुष शर्मा स्वयं को युवा नेता कहते हैं और उनके फेसबुक पेज को 8000 से अधिक लोग फॉलो करते हैं ) ने 20 जनवरी को गृहमंत्री, मुख्यमंत्री और यूपी पुलिस को ट्विटर के माध्यम से सचेत करने का प्रयास भी किया था।

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यह बात खुद आयुष शर्मा उर्फ़ पंडित ने स्वयं अपने फेसबुक पोस्ट पर कहीं हैं।

आयुष शर्मा उर्फ़ पंडित जी के फेसबुक वाल पर अभी भी उसी किस्म की सांप्रदायिक कमेंट जारी हैं। जिस तरह के फेसबुक वॉर ने दंगों की जमीन तैयार की थी। मीडिया रिपोर्ट्स में भी दंगों की शुरुआत सोशल साइट्स के जरिए होने की बात सामने आने के बाद भी प्रशासन द्वारा इसका संज्ञान न लेना प्रशासनिक लापरवाही का सबूत है। रिहाई मंच यह मांग करता है कि सोशल साइट्स पर इस तरह की तनावपूर्ण स्थिति में भड़काऊ टिप्पणी करने वालों के खिलाफ कार्यवाही की जाए।

इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि संकल्प फाउंडेशन के सदस्यों को पूरीं जानकारी थी और इनमें से एक आयुष शर्मा ने इसकी सूचना भी दी थी। 25 जनवरी की रात भी आयुष शर्मा ने एसएसपी को फेसबुक पर मेसेज कर इसके बारे में चेतावनी दी थी फिर भी जानबूझकर इसे नजरंदाज किया गया और सांप्रदायिक तत्वों को हथियार इकठ्ठा करने और हिंसा करने की ढील दी गई। कासगंज में हुई सांप्रदायिक हिंसा में राजनीतिक कुचक्र की बात तत्कालीन एसएसपी सुनील सिंह द्वारा भी कही गई थी जिसके तत्काल बाद उन्हें वहां से हटा दिया गया है। एटा सांसद राजवीर सिंह का वहां दिया गया भड़काऊ भाषण राजनीतिक संरक्षण में हिंसा की पूर्वनियोजित घटनाओं को पुष्ट करता है। जबकि उसी वीडियो में पीछे से एक आवाज आई है कि वर्दी वाले ने मारा है।

इसके साथ ही ‘राजपूत गौरव’ से लैस युवा हिन्दू संगठनों द्वारा हाल-फिलहाल में कासगंज में करनी सेना द्वारा पद्मावत फिल्म का विरोध के समर्थन में मार्च निकाला गया था। संकल्प फाउंडेशन के अनुकल्प विजय चन्द्र चौहान ने इसी राजपूत गौरव के अभिमान से लैस होकर “जय राजपूताना” का उद्घोष किया और फिल्म के बहाने शक्ति प्रदर्शन भी किया था।

इसके साथ ही कासगंज रेलवे स्टेशन के करीब में स्थित बाबा शेरनाथ मंदिर की भूमिका भी संदिग्ध है। बाबा शेरनाथ मंदिर, नाथ संप्रदाय की परम्परा से जुड़ा हुआ मंदिर है जिसके मुख्य संरक्षक नाथपंथ के अन्य सभी मंदिरों के संरक्षक, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं और उनके आदेश पर ही वर्तमान महंत सोमनाथ को कासगंज स्थित शेरनाथ मंदिर का प्रभार दिया गया है, जांच के दौरान यह तथ्य सामने आया है कि ‘संकल्प’ संगठन के सदस्य युवाओं का इस मंदिर में नए महंत के आने के बाद से साप्ताहिक आयोजन/हर सोमवार को संकल्प फाउंडेशन की तरफ से पुनः महाआरती का आयोजन किया जाता था और गतिविधियाँ होती रही हैं। मृतक चन्दन भी संकल्प फाउंडेशन के मुख्य संस्थापक सदस्यों में से था और वह रेलवे स्टेशन स्थित शेरनाथ मंदिर के महंत के करीबी संपर्क में था।

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प्रत्येक सोमवार की महाआरती के आयोजन में उसकी मुख्य भूमिका थी।

अभी हाल ही में सांप्रदायिक हिंसा से ठीक पहले मंदिर में इसके पूर्व महंत रतननाथ की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की गई। पूरे शहर में जुलूस भी 24 जनवरी को निकाला गया था। इस पूरे कार्यक्रम के कर्ताधर्ता ‘संकल्प’ संगठन और उसके सदस्य थे।

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इस पूरे कार्यक्रम के कर्ताधर्ता ‘संकल्प’ संगठन और उसके सदस्य थे।

सांप्रदायिक हिंसा के दौरान संदिग्ध स्थितियों में मृत चन्दन द्वारा मंदिर को इसके पूर्व 11000 रुपए भी दिए गए थे इस बात की पुष्टि मंदिर के महंत सोमनाथ ने की है इसके साथ ही साथ भंडारा और कम्बल वितरण इत्यादि भी इनके द्वारा किया गया था। रिहाई मंच ने बाबा शेरनाथ मंदिर और ‘संकल्प’ संगठन के आपसी संबंधों पर भी सवाल खड़े किए हैं। इससे पहले भी मंदिर परिसर की चहारदीवारी को लेकर पड़ोसियों से कहासुनी हुई थी और उस वक़्त भी चन्दन और संकल्प संगठन ने मंदिर की ओर से दबाव बनाकर महंत सोमनाथ की मदद की थी। मंच ने इस पूरे मामले में शेरनाथ मंदिर और संकल्प के संबंधों पर उच्च स्तरीय जांच करने की मांग की है।

इसके अलावा इस पूरे मामले में बिलराम गेट में ठंडी सड़क स्थित प्रसिद्ध चामुण्डा मंदिर विवाद एक अन्य पहलू है जिसके कारण एबीवीपी और अन्य हिंदूवादी संगठन मुसलमानों से नाराज थे। मंदिर परिसर के पास कुछ समय पहले ही गेट लगाने को लेकर दोनों सम्प्रदायों में विवाद हुआ था और गेट लगाने के विरोध में आसपास के मुस्लिम लोगों ने धरना भी दिया था क्योंकि उनका कहना था कि यह आम रास्ता है और इसके बंद हो जाने से बस्ती के लोगों को आने-जाने में परेशानी का सामना करना पड़ेगा। इस विवाद के कारण पहले भी स्थिति तनावपूर्ण थी जिसे जानबूझकर एबीवीपी, संकल्प फाउंडेशन और अन्य हिंदूवादी संगठनों ने लोगों को भड़काने में प्रयोग किया और 26 जनवरी को साजिशन सांप्रदायिक हिंसा की गई।

इसके बाद भी प्रशासन द्वारा दंगाइयों को काबू करने के प्रयास नहीं किये गए और पुनः सांप्रदायिक तत्वों को खुलेआम आगजनी, लूटपाट करने दिया गया जिसमें बड़ी संख्या में मुसलमानों की दुकाने जलाई गईं और घर-मकान, गाड़ियाँ जला दी गईं। भारी संख्या में पुलिस बल तैनात होने के बाद भी एकतरफा बदले की कार्यवाही से प्रेरित होकर पुलिस द्वारा सांप्रदायिक तत्वों को न सिर्फ संरक्षण दिया गया बल्कि एटा सांसद राजवीर सिंह को खुलेआम भड़काऊ भाषण देने की भी छूट दी गई जिससे और अधिक संख्या में मुसलमानों की दुकानों और घरों में आगजनी और लूटपाट की घटनाएँ तीसरे दिन भी होती रहीं। कासगंज हिंसा में एटा सांसद राजवीर सिंह को भी हिंसा भड़काने के मामले में मुकदमा चलने की मांग रिहाई मंच ने की है।

पुलिस द्वारा मुस्लिम बस्तियों में घरों में छापेमारी के नाम पर तोड़-फोड़ करने की बात सामने आई है। चन्दन की मौत के मामले में आरोपित वसीम जावेद और उनके चाचा के घर में पुलिस द्वारा सांप्रदायिक भावना के कारण पूरे घर में तोड़फोड़ की गई और सारा सामान तहस नहस कर दिया गया। इस तरह की पुलिस कार्रवाई से कासगंज के मुस्लिम घरों में दहशत का माहौल बन गया है और कोई भी निवासी सामने आने और अपना बयान दर्ज करने से डर रहा है।

कासगंज के मुस्लिमों ने यह भी बताया कि जो कोई भी मीडिया में अपने बयान दे रहा है या मीडिया को घटना के बारे में अवगत करा रहा है पुलिस उन्हें चिन्हित कर उत्पीड़ित कर रही है। इस तरह की पुलिसिया कार्यवाही से जांच प्रभावित हो रही है और निष्पक्ष जांच सम्भव नहीं है। रिहाई मंच यह मांग करता है कि मामले की उच्स्तरीय जांच सुनिश्चित की जाए क्योंकि निष्पक्ष जांच के बिना पीड़ितों को न्याय नहीं मिलेगा।

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