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जल संरक्षण के असली हीरो हैं उमेश कुमार श्रीवास्तव

Real Hero of Water Conservation Umesh Kumar Shrivastav

Real Hero of Water Conservation Umesh Kumar Shrivastav

धरती पर दो तिहाई हिस्सा जल है जिसमें पीने योग्य पानी मात्र ढाई प्रतिशत है जबकि एक प्रतिशत जल पर ही इंसानों की पहुँच है। जिस तरह से जल का दुरूपयोग किया जा रहा है उस तरह से पृथ्वी पर पीने योग्य पानी की उपलब्धता सबसे बड़ी समस्या बन जाएगी। अब तो ऐसा भी कहा जाने लगा है कि अगला विश्व युद्ध पानी को ही लेकर होगा क्योंकि पूरा विश्व इस समस्या से जूझ रहा है। आज की सबसे बड़ी जरूरत जल के संरक्षण की है, क्योंकि जल है तो ही कल है। जल संरक्षण के क्षेत्र में किये जा रहा प्रयासों में यदि कोई सबसे बड़ा नाम है तो वो राजेन्द्र सिंह का। प्रतिष्ठित मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित राजेन्द्र सिंह को जलपुरूष भी कहा जाता है। पर ये जलपुरूष राजेन्द्र सिंह भी एक ऐसे व्यक्ति से प्रभावित हैं जिसने अपना सम्पूर्ण जीवन एक तरह से जल संरक्षण हेतु समर्पित कर दिया है। ये व्यक्ति कोई और नहीं गाजीपुर जिले के मानिकपुर कोटे गाँव निवासी उमेश कुमार श्रीवास्तव है। जिन्होने अपना जीवन जल संरक्षण के लिये समर्पित कर दिया हैं।

नदियों की बदहाली देख मिली जल संरक्षण की प्रेरणा

जनपद गाजीपुर के मानिकपुर कोटे गाँव के रहने उमेश कुमार श्रीवास्तव को पर्यावरण बचाने और जल संरक्षण की प्रेरणा तब मिली जब उन्होंने नदियों की बदहाली देखी और खासकर गाजीपुर की बेसे नदी का जो विलुप्त होने के कगार पर थी। नदियों की बदहाली देख उमेश का मन घरों में बड़े स्तर पर हो रहे जल के दुरूपयोग से व्यथित रहता था। जिसके कारण वह हमेशा जल संरक्षण कैसे करें, इसके बारे में सोचते रहते थे। उमेश का मन नदियों की दुर्दशा को देखकर द्रवित रहता था और ये नदियों को स्वच्छ करने के लिये लोगों को प्रोत्साहित तो करते ही रहते थे अपने स्तर से भी समय-समय पर नदियों का सफाई के लिये अभियान चलाते रहते थे।

गाजीपुर में बहती है नौ नदियां

गाजीपुर में कुल 9 नदियां प्रवाहित होती हैं जिनमें मुख्य रूप से गंगा नदी प्रवाहित होती है। इसके साथ ही गोमती, कर्मनाशा, बेसो, मगही, छोटी सरजू, भैसही, गांगी और उदन्ती नदियां भी गाजीपुर में प्रवाहित होती हैं। बेसो नदी जो कि जौनपुर के बोरई खुर्द से निकलती है और गाजीपुर के जलालपुर में गंगा में मिल जाती है जहां पर जलमार्ग के लिये एक मिनी बंदरगाह भी इस समय प्रस्तावित है।

बीएचयू प्रोफेसर और रेल राज्यमंत्री का मिला साथ

धीरे-धीरे उमेश के प्रयास की बात मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित जलपुरूष राजेन्द्र सिंह और जल वैज्ञानिक बीएचयू आईआईटी के पूर्व निदेशक प्रोफेसर यू. के. चौधरी तक पहुँची। उमेश के उत्कृष्ट कार्य और जल संरक्षण के प्रति लगाव देखकर उन्होंने स्वयं ही उमेश से सम्पर्क साधा। 2013 में उमेश को राजस्थान के अलवर में बुलाया गया और जल संरक्षण पर इनके द्वारा किये जा रहे कार्यों के लिये सम्मानित किया। रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा भी इस अभियान से प्रभावित हुये और उनके प्रयासों से बेसो नदी पर दो चेकडैम बनाने की शुरूआत की गयी जिसमें एक चेकडैम बन भी चुका है।

बेसो नदी का किया निरीक्षण

इसके बाद 20 फरवरी 2014 को राजेन्द्र सिंह गाजीपुर आये और दो दिनों तक बेसो नदी की निरीक्षण किया और उसकी स्थिति को जाना। इस दौरान उद्गम स्थल से लेकर उसके गंगा में संगम स्थल तक यात्रा की। बेसो नदी को पुनर्जीवित करने के लिये अभियान की शुरूआत की जो उमेश की देख-रेख में आगे बढ़ा। बेसो नदी आज पुनर्जीवित हो जाने और उमेष के परिश्रम और लगन से प्रभावित रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा भी इस अभियान से जुड़ गए। उनके प्रयासों से बेसो नदी पर दो चेकडैम बनाने की शुरूआत की गयी जिसमें एक चेकडैम बन भी चुका है।

समय-समय पर आयोजित होता है सेमिनार

उमेश समय-समय पर जल संरक्षण हेतु सेमिनार का आयोजन करते रहते है। जिसमें लोगों को जल संरक्षण के लिए प्रेरित करते है और विभिन्न पहलुओं पर भी चर्चा करते रहते है। सेमिनार के दौरान बताते है कि जल हमारे जीवन में किस प्रकार से बहुमूल्य है और इसे कैसे संरक्षित किया जा सकता है। सेमिनार के दौरान विषय विशेषज्ञ भी आते है। 16 जुलाई 2014 को जनपद गाजीपुर में एक सेमिनार का आयोजन किया गया जिसमें जलपुरूष राजेन्द्र सिंह और प्रोफेसर यू. के. चैधरी शामिल हुये और सेमिनार को सम्बोधित किया।

तो ऐसे करते है घरेलू व्यर्थ जल का सद्उपयोग

उमेश नदियों के संरक्षण के लिये तो हमेशा प्रयासरत रहते ही हैं पर आमलोग जिस पानी को बेकार समझकर बहा देते हैं उस पानी को और साथ ही बारिश के पानी का संरक्षण और सदुपयोग कैसे किया जा सकता है ये भी उमेश से सीखा जा सकता है। इसके लिये भी इन्होंने एक अभियान चला रखा है जिसकी शुरूआत इन्होंने अपने घर से ही की है। अपने घर में इन्होंने स्नान और बर्तन आदि धोने के बाद जो पानी दूसरे लोग बेकार बहा देते हैं उससे इन्होंने पूरी एक बागवानी तैयार कर दी है। उमेश के घर का गंदा पानी पहले एक चैम्बर में जाता है जो कि घर के अन्दर बना है उसके बाद दूसरे चैम्बर में जाता है जो घर के बाहर है। इन दोनों चैम्बर में घर का गंदा पानी रिफाइन हो जाता है और उसके बाद ये नाली के माध्यम से पौधों तक पहुँचता है और उनकी सिंचाई होती है। यही नहीं बरसात का पानी भी इसी प्रक्रिया से होकर पौधों तक पहुँचता है और बचे हुये पानी का व्यवस्था भी इन्होंने कर रखी है जो चार अलग-अलग सोख्ता में संचित हो जाता है और यही संचित पानी पानी के लेबल को बनाये रखता है।

10 से 15 हजार आता है खर्च

इस व्यवस्था को बनाने में मात्र 10 से 15 हजार का खर्च आता है पर जल जिसका कोई मोल नहीं होता वो संचय होता है। जहाँ सरकार जल संचय और नदियों के संरक्षण पर करोड़ों रूपया खर्च करके भी वांछित परिणाम नहीं दे पा रही है वहीं उमेश का ये छोटा सा प्रयास अब जनपद गाजीपुर में एक अभियान का रूप ले चुका है और गाजीपुर के सैकडों घरों में ये विधि अपनायी जा रही है। ऐसे में यदि कहा जाय कि उमेश जल संरक्षण के हीरो हैं तो गलत नहीं होगा। आज समाज को ऐसे ही रियल हीरो की जरूरत है जो अपने छोटे-छोटे प्रयासों से ऐसे परिणाम दे रहे हैं जो सरकार लाखों करोड़ों खर्च करके भी नहीं दे पा रही है।

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