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आखिर भाजपा सरकार में ही क्यों होते हैं आतंकी हमले!

rihai manch four days of attack

रिहाई मंच ने अमरनाथ यात्रा पर हुए आतंकी हमले (terror attack) पर उठ रहे सवालों पर सरकार से जवाब मांगते हुए इसे प्रथम दृष्टया संदिग्ध करार दिया है। मंच ने प्रधानमंत्री मोदी का चुनाव जीतने के लिए साम्प्रदायिक माहौल बनाने और अक्षरधाम मंदिर हमले जैसे संदिग्ध आतंकी घटनाओं में भूमिका का पुराना रिकार्ड देखते हुए इस पूरे मामले की न्यायिक जांच कराने की मांग की है।

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रिहाई मंच नेता और अक्षरधाम मंदिर पर 2002 में हुए कथित आतंकी हमले पर आधारित पुस्तक ‘आॅपरेशन अक्षरधाम’ के लेखकों राजीव यादव और शाहनवाज आलम ने भाजपा सरकार पर आरोप लगाया है कि 2002 में स्वामीनारायण मंदिर में बड़े पैमाने पर आस्था रखने वाले पटेल समुदाय के ध्रुवीकरण के लिए जिस तरह से अक्षरधाम मंदिर पर हमले का षडयंत्र कर बेगुनाहों को मारा गया। ठीक उसी तरह आगामी गुजरात चुनावों में पटेल समुदाय व जीएसटी का विरोध करने वाले व्यवसायियों को साधने के लिए अमरनाथ में बेगुनाहों का खून बहाने का षडयंत्र एक राजनीति के तहत हुआ है।

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यह सिर्फ संयोग नहीं है कि (terror attackमारे गए और घायल लोगों में अधिकतर वलसाड और सूरत के हैं। जहां पिछले 10 दिनों से व्यापारियों ने मोदी सरकार के खिलाफ जीएसटी के विरूद्ध अपनी दुकानें बंद रखी हैं। चार दिन पहले ही डेढ़ लाख से ज्यादा लोगों ने मोदी सरकार के खिलाफ रैली निकाली थी। यही वो इलाकें हैं जो मोदी और गुजरात की भाजपा सरकार से नाराज चल रहे पटेल समुदाय के आंदोलन का केंद्र हैं, से भी संदेह उत्पन्न होता है। ऐसे में अमरनाथ यात्रियों पर हुए आतंकी हमले को लेकर विवादित एनएसए अजित डोभाल जिनपर कश्मीरी जनता हजरत बल से लेकर तमाम फर्जी आतंकी घटनाओं को अंजाम देने का आरोप लगाती रही है कि भूमिका की जांच होना जरूरी हो गया है।

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आॅपरेशन अक्षरधाम‘के लेखकों ने कहा कि गुजरात में मुसलमानों के जनसंहार के बाद मोदी से नाराज चल रहे पटेल समुदाय को बागी पूर्व मुख्यमंत्री केशू भाई पटेल से अलग करने के लिए ही स्वामी नारायण सम्प्रदाय जिससे पटेल समुदाय का विशेष लगाव रहा है के मंदिर अक्षरधाम पर आतंकी हमले का षडयंत्र हुआ था। जिसके बाद पटेल समुदाय ने हिंदुत्व के नाम पर मोदी को वोट दिया था। इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि मोदी और भाजपा से नाराज पटेल वोट बैंक को साधने के लिए मोदी सरकार ने ये हत्याकांड करवाया हो। इसलिए इस पूरे मामले की सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा न्यायाधीश की निगरानी में जांच करानी चाहिए।

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उन्होेंने कहा कि (terror attackघटना पर उठ रहे सवाल जैसे उच्च स्तरीय सुरक्षा के बीच होने वाली इस यात्रा में बिना रस्ट्रिेशन के गुजरात की बस का तय समय शाम सात बजे के बाद भी चलना। इस पूरे सफर में उसका कहीं पर भी चेक न किया जाना। बिना रस्ट्रिेशन के भी बस के आगे-आगे सुरक्षा के नाम पर एक पुलिस वैन का चलना। कथित आतंकी हमले में किसी भी सुरक्षाकर्मियों का न मारा जाना या न घायल होना। सिर्फ दर्शनार्थियों का मारा जाना साबित करता है कि उन्हें किसी साजिश के तहत मौत के मुंह में धकेला गया।

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मंच नेताओं ने यह भी कहा है कि मीडिया रिपोर्टस् में पुलिस के हवाले से इस बात की पुष्टि होना कि उस बस के वास्तविक मालिक का नाम दस्तावेजी आधार पर न पता चल पाना भी इस आशंका को पुष्ट करता है कि इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव से गुजरने वाले गुजरात से इन यात्रियों को इस बस में मौत के मुंह में धकेलने के लिए ही तो नहीं लाया गया था? अमरनाथ यात्रियों पर हमेशा भाजपा सरकार में ही हमले होना भी इस संदेह को पुष्ट करता है कि यह घटनाएं कहीं राजनीतिक षडयंत्र का हिस्सा तो नहीं हैं।

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लेखकों ने कहा कि यह कथित आतंकी घटना अननंतनाग के ही चट्टीसिंहपुरा जनसंहार से काफी मिलती-जुलती है जहां 29 मार्च 2000 को अज्ञात हत्यारों ने 34 सिखों को मौत के घाट उतार दिया था। जिसकी निंदा अलगाववादी समूहों समेत हिजबुल मुजाहिदीन ने ही नहीं की थी। बल्कि तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन जिनके भारत दौरे से एक रात पहले यह हत्याकांड हुआ था। उन्होंने भी इसे भारतीय एजेंसियों का काम बताया था।

उन्होंने कहा कि अमरनाथ यात्रियों की हत्या पर (terror attack) कश्मीरी चरमपंथी संगठनों का इसे कराने से इनकार करना कोई सामान्य घटना नहीं है। क्योंकि कश्मीर जैसे हिंसक संघर्ष से गुजर रहे छेत्र जहां दर्जनों चरमपंथी संगठन सक्रीय हों वहां किसी भी हमले की तत्काल जिम्मेदारी लेना उन संगठनों को अपनी प्रासंगिकता को बनाए रखने के लिए सबसे अहम होता है। ऐसे में इस घटना से चरमपंथी संगठनों का इनकार करना और इसके लिए भारतीय सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों की भूमिका पर सवाल उठाना इस पूरे मामले की जांच की जरूरत के लिए आधार बनाता है।

मंच नेताओं ने कहा कि घटना को अंजाम देने से इनकार करने वाला एक चरमपंथी संगठन है। सिर्फ इस आधार पर उसके पक्ष को खारिज कर देना न्याय के हित में नहीं होगा और ना ही यह भारतीय अवाम के हित में होगा जो इस निमर्म हत्याकांड की सच्चाई जानना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि इस दावे को जांच के केंद्र में रखना इसलिए भी जरूरी है कि साम्प्रदायिक शक्तियां इसे हिंदू श्रद्धालुओं पर मुसलमानों द्वारा हमले के बतौर प्रचारित कर देश के दूसरे हिस्सों में मुसलमानों के खिलाफ हिंदुओं में हिंसक जनमत तैयार कर रहे हैं।

रिहाई मंच ने कहा कि पिछले दिनों पत्थरबाजी और पैलटगन के सवाल पर जो सक्रियता सुप्रीम कोर्ट ने दिखलाते हुए पत्थरबाजी रोकने को कहा था। ऐसे में जब कश्मीर के अलगाववादी और चरमपंथी संगठनों ने अमरनाथ यात्रियों पर हुए आतंकी हमले की जिम्मेदारी नहीं ली तो इसकी न्यायिक जांच होना आवश्यक हो जाता है। यह इसलिए भी की इस घटना से कश्मीर की जो छवि बनाई गई उससे व्यापक स्तर पर भारतीय जनमानस में उसके खिलाफ अलगाव की भावना बढ़ेगी जिसे (terror attack) निष्पक्ष जांच द्वारा सामने लाकर ही रोका जा सकता है।

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