देश के सबसे बड़े सूबे की सियासत में अगर हलचल हाेती है ताे इसका असर पूरे देश की राजनीति पर नजर अाता है। वाे अपराधी है पर उसे लाेग अपना मसीहा भी मानते हैं। राजनीति उसे विरासत में मिली पर अपराध की दुनिया से हाेकर उसने प्रदेश में अपना एक अलग ही रूतबा कायम किया।
जानिये काैन है मुख्तार अंसारी।
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यूपी के गाजीपुर जिले में मुख्तार अंसारी का जन्म हुआ था। उनके दादा मुख्तार अहमद अंसारी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे। जबकि उनके पिता एक कम्यूनिस्ट नेता थे। राजनीति मुख्तार काे विरासत में मिली थी। किशोरवस्था से ही मुख्तार निडर और दबंग थे। उन्होंने छात्र राजनीति में कदम रखा और सियासी राह पर चल पड़े। 1988 में पहली बार हत्या के एक मामले में मुख्तार का नाम आया था।
इस दाैरान मुख्तार के खिलाफ कोई पुख्ता सबूत पुलिस नहीं जुटा पाई थी लेकिन इस बात को लेकर वह चर्चाओं में आ गए थे। 1990 का दशक मुख्तार अंसारी के लिए बड़ा अहम था। छात्र राजनीति के बाद जमीनी कारोबार और ठेकों की वजह से वह अपराध की दुनिया में कदम रख चुके थे। पूर्वांचल के मऊ, गाजीपुर, वाराणसी और जौनपुर में उनके नाम का सिक्का चलने लगा था। 1995 में मुख्तार अंसारी ने राजनीति की मुख्यधारा में कदम रखा।
1996 में मुख्तार अंसारी पहली बार विधान सभा के लिए चुने गए। उसके बाद से ही उन्होंने ब्रजेश सिंह की सत्ता को हिलाना शुरू कर दिया। 2002 आते आते इन दोनों के गैंग ही पूर्वांचल के सबसे बड़े गिरोह बन गए। इसी दौरान एक दिन ब्रजेश सिंह ने मुख्तार अंसारी के काफिले पर हमला कराया। दोनों तरफ से गोलीबारी हुई इस हमले में मुख्तार के तीन लोग मारे गए। ब्रजेश सिंह इस हमले में घायल हो गया था। उसके मारे जाने की अफवाह थी।
इसके बाद बाहुबली मुख्तार अंसारी पूर्वांचल में अकेले गैंग लीडर बनकर उभरे। मुख्तार अंसारी ने गाजीपुर और मऊ क्षेत्र में चुनाव के दौरान उनकी जीत सुनिश्चित करने के लिए मुस्लिम वोट बैंक का सहारा लिया। एक दंगे के बाद मुख्तार अंसारी पर लोगों को हिंसा के लिए उकसाने के आरोप लगे और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। 2007 में मुख्तार अंसारी और उनके भाई अफजल बहुजन समाज पार्टी (बसपा) में शामिल हो गए।
उन दोनों को पार्टी आने की इजाजत इसलिए मिली क्योंकि उन्होंने दावा किया था कि वे झूठी ‘सामंती व्यवस्था’ के खिलाफ लड़ रहे थे और इसी वजह से उन्हें आपराधिक मामलों में फंसाया गया था। उन्होंने किसी आपराधिक गतिविधि में भाग लेने से परहेज करने का वादा भी किया था। बसपा प्रमुख मायावती ने रॉबिनहुड के रूप में मुख्तार अंसारी को प्रस्तुत किया और उन्हें गरीबों का मसीहा भी कहा था।
2010 में अंसारी पर राम सिंह मौर्य की हत्या का आरोप लगा। मौर्य, मन्नत सिंह नामक एक स्थानीय ठेकेदार की हत्या का गवाह था। जिसे कथित तौर पर 2009 में अंसारी के गिरोह ने मार दिया था। जब पार्टी को अहसास हुआ कि मुख्तार और उनके भाई अब भी आपराधिक गतिविधियों में शामिल हैं तो दोनों भाइयों को 2010 में बसपा से निष्कासित कर दिया गया। बसपा से निष्कासित कर दिए जाने के बाद दोनों भाईयों को अन्य राजनीतिक दलों ने अस्वीकार कर दिया।
मुख्तार ने बतौर विधायक क्षेत्र में सड़कों, पुलों, और अस्पतालों के अलावा एक खेल स्टेडियम का निर्माण भी कराया है। साथ ही वे अपनी निधि का 30% निजी और सार्वजनिक स्कूलों और कॉलेजों पर भी खर्च करते आए हैं। पूर्वांचल के एक लेखक गोपाल राय के मुताबिक अंसारी ने व्यक्तिगत रूप से उनके बेटे को एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनाने में कैसे उनकी की मदद की वे कभी नहीं भूल सकते।
Who is Mukhtar Ansari
तीनों अंसारी भाइयों मुख्तार, अफजल और सिब्गतुल्लाह ने 2010 में खुद की राजनीतिक पार्टी कौमी एकता दल का गठन किया। इससे पहले मुख्तार ने हिन्दू-मुस्लिम एकता पार्टी नामक एक संगठन शुरू किया था। जिसका विलय कौमी एकता दल में कर दिया गया था। मुख्तार अंसारी विधान सभा सदस्य के तौर पर मिलने वाली विधायक निधि से 20 गुना अधिक पैसा अपने निर्वाचन क्षेत्र में खर्च करते रहे हैं। उन्होंने मऊ और अन्य क्षेत्रों में विकास के कई बड़े काम करवाएं हैं।
ऐसे ही एक और आदमी की पत्नी के दिल का ऑपरेशन के लिए उन्होंने सारा पैसा दिया था। मुख्तार अंसारी का पूरा परिवार क्षेत्र में होने वाली गरीबों की बेटियों की शादी के लिए दहेज का पूरा भुगतान करते हैं। अंसारी के राजनीतिक कैरियर को कानूनी उथल पुथल ने हिलाकर रख दिया था। अक्टूबर 2005 में मऊ में भड़क हिंसा के बाद उन पर कई आरोप लगे। जिन्हें खारिज कर दिया गया था। उसी दौरान उन्होंने गाजीपुर पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया था।
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तभी से वह जेल में बंद हैं। पहले उन्हें गाजीपुर से मथुरा जेल भेजा गया था। लेकिन बाद में उन्हें आगरा जेल में भेज दिया गया था। वह तब से आगरा जेल में ही बंद हैं लेकिन पूर्वांचल में उनका प्रभाव कम नहीं है। मुख्तार अंसारी ने दो बार बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और दो बार निर्दलीय। उन्होंने जेल से ही तीन चुनाव लड़े हैं। पिछला चुनाव उन्होंने 2012 में कौमी एकता दल से लड़ा और विधायक बने। वह लगातार चौथी बार विधायक हैं। पूर्वांचल में उनका काम उनके भाई और बेटे संभाल रहे हैं।