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100 दिन तो दूर, 40 दिन भी मजदूर को मनरेगा से काम मिलना मुश्किल

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पीएम मोदी ने सदन में एक बार कहा था कि मनरेगा को सरकार कभी ख़त्म नहीं करेगी क्योंकि ये कांग्रेस की असफलता का सबूत है. मनरेगा से जुड़ी एक और तस्वीर काफी दिनों तक चर्चा में रही और वो तस्वीर राहुल गाँधी की थी, राहुल गाँधी राजस्थान में मजदूरों के बीच मेहनत करते नजर आये थे. लेकिन मनरेगा की तस्वीर और उसकी हकीकत कितनी डरावनी है ये न तो सरकार बता पा रही है और न इसमें सुधार की कोशिशें की जा रही हैं, हाँ, सरकार ने इसका बजट जरुर बढ़ाया है.

मनरेगा और उसका बजट

रोजगार के लिहाज से मनरेगा की तस्वीर भी डराने वाली ही है क्योंकि मनरेगा से मजदूरों को काम मिलना भी मुश्किल हुआ है. प्रदानमंत्री मोदी ने भी हर बरस मनरेगा बजट भी बढाया. 2014-15 में 32,139 करोड , 2015-16 में 39,974 करोड, 2016-17 में 47,411 करोड, 2017-18 में 53,152 करोड की रकम मनरेगा के लिए स्वीकृत की गई, बावजूद इसके सरकार के ही आंकड़े बताते हैं कि जितनी बड़ी संख्या में मनरेगा मजदूर देश में है, उतने मजदूर को काम देना तो दूर, उनको मनरेगा का काम दिया जाता है उन्हें भी सौ दिन काम मिल नही पाता है.

देश में मनरेगा मजदूरों के आंकड़े:

देश में 12,65,00,000 मनरेगा जॉब कार्ड जारी किया गया, जिसमें 7,24,00,000 जाब कार्ड वालों को काम मिला. जबकि कुल मनरेगा मजदूरों की तादाद 25,17,00,000 है. मनरेगा के तहत देश भर में 25 फिसदी काम ही पूरा हो पाया. मसलन 2017-18 में 1,67,00,000 काम में से 43,55,000 काम ही पूरा हो पाया और मनरेगा के तहत सबसे मुश्किल तो 100 दिन का काम भी नहीं मिल पाना है.

सरकार के आकंड़े ही उठा रहे सवाल

सरकार के आंकडे बताते है कि औसतन 168 रुपये के हिसाब से 40 दिन का ही काम दिया जा सका. यानी जो सिर्फ मनरेगा के जिन्दगी गुजारने वाले की कल्पना ही की जा सकती है. कहीं न कहीं, मनरेगा को जिस सोच के साथ देश में लागू किया गया, वह जिस तेजी से लड़खड़ा रहा है. उससे ग्रामीण भारत में रोजगार का नया संकट पैदा हुआ है और उसी का असर है कि किसान- मजदूर के सामने संकट गहरा रहा है लेकिन सरकार को शायद इसकी सुध लेने का वक्त नहीं है.

क्या कर रही है सरकार?

केंद्र की बीजेपी सरकार ने पहले मनरेगा को लेकर ही कांग्रेस पर निशाना साधा फिर अपने बजट में मनरेगा के लिए धन को बढ़ाया. लेकिन इस धन का इस्तेमाल और जॉब कार्ड के आधार पर कितनों को रोजगार मिल पाया, इसपर सरकार चुप रही. एक बहुत बड़ी संख्या है मजदूरों की जिन्हें 10o दिनों का रोजगार भी मिल नहीं पाता है. ये केवल मजदूरों की बात है. आईआईटी, एमबीए, इंजिनियर और उच्च शिक्षा प्राप्त युवाओं की हालत भी रोजगार के मामले में अच्छी नहीं है क्योंकि सरकार तमाम वादों के बाद भी रोजगार के बड़े अवसर दे पाने में कामयाब नहीं हो पायी है.

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